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- High Pressure Processing in the Food Industry: A Revolutionary Approach to Food Preservation and Quality Enhancement
- पुनर्जीवित सैरनी दुनिया को शांति की सीख देती है।
- Environmental and Health Impacts of Uranium Mining in Jadugoda, Jharkhand
- Sustainable Solutions for Global Land Degradation: Natural Farming Perspectives
- Soil Pollution from Mining Activities: Impact on Living Organisms
- Mitigating Global Warming Through Earth Science: Geological Strategies
- India’s Ecosystem – Biodiversity and Sustainability
Author: Krishna
सार जलाच्छादित धान के खेतों में ऑक्सीजन प्रवेश कई कारणों से अवरोधित होता है, जो मीथेनोजेन्स (मीथेन उत्सर्जक बैक्टीरिया) की ग्रोथ एवं गुणक वृद्धि के लिए आदर्श स्थिति पैदा करता है। मानवजनित कार्य मीथेन उत्सर्जन के लगभग 8% के लिए जिम्मेदार है। ग्लोबल वार्मिंग की समस्याओं और जलवायु परिवर्तन से संबंधित ग्रीनहाउस गैसों से निपटने के लिए धान की खेती द्वारा उत्सर्जित मीथेन के स्तर को कम करना प्रमुख रणनीतिक प्रबंधन होगा । इसलिये मानवजनित मीथेन उत्सर्जन को एक दशक के भीतर लगभग 45% तक कम किया जाना चाहिए। यह आने वाले दशकों में ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ने से रोकेगा…
Abstract: In the developing world different kinds of energy are in use, which are either renewable (solar, wind, hydroelectric power, biomass and geothermal energy) or non-renewable (fossil fuels, petroleum, nuclear and natural gas). Due to the limited resources of non-renewable energy and its scarcity in the near future, the world is shifting towards the use of renewable energy and its widely available resources. In which the solar energy is the only energy which can be used both at house hold and industrial level. Solar energy is the continuous release of heat and light from the Sun, which is due to…
पपीता एक ही वर्ष में तैयार होने वाला उपयोगी तथा पौष्टिक गुणों से भरपूर फल है। इसमें अधिक क्षमता तथा बाजार की अधिक मांग होने के कारण हमारे देष में इसका उत्पादन तेजी से बढ रहा है वैसे तो पपीता गर्म जलवायु की खेती है, परन्तु कृषि क्रियाओं में परिवर्तन कर इसे अन्य क्षेत्रों में भी उगाया जा सकता है। भारत में मुख्यतः पपीता महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात तथा पष्चिमी उत्तर प्रदेष में व्यवसायिक रूप से उगाया जाता है। भूमि तथा जलवायु सामान्यतः पपीता पानी न रूकने वाली रेतीली दोमट तथा दोमट भूमि में उगाया जाता है। (पी0एच0) मान 7 से…
Abstract Although the It is fact that pre-harvest bagging is a straight forward and growers convinced method which is to be utilizing as important tool to improve significantly the actual appearance and compound fruit quality although, it is a costly and little bit tedious practice in large canopy fruit trees which needs enormous scope creation. Although, notwithstanding, farmers can decrease production expenses and increment efficiency and benefit by over 90% per hectare. Simultaneously, it is a powerful option in contrast to reduce the cost of utilization of agrochemicals to control various fungal diseases and insects attacks by reducing the sprays…
Agricultural system of India witnessed a transformational change through various progressive scientific innovation. At the start, it endorses with an institute (IARI, 1905) and a council (ICAR, 1929) to boost the agricultural its allied researches. The concurrent sectors of agriculture, horticulture, animal its breeds & nutritional status of milk-meat, aquaculture, farm machinery and implementation in the post-harvest technology too contributed to the growth of the Indian agriculture and boost the economy. The variable climate issue is being tackled up by climate resilient smart village concept, conservation of natural resources. Now, the country is in the course to talk about the…
सारांष हरित क्रान्ति के समय देष की बढ़ती हुई जनसंख्या को प्रर्याप्त भोजन उपलब्ध कराने के लिए विभिन्न प्रकार के रसायनिक उर्वरकों एवं रसायनिक कीटनाषकों का प्रयोग फसल की उत्पादकता बढ़ाने के लिए करना पड़ा। कुछ वर्षों के बाद ही यह ज्ञात हो गया कि रसायनिक कीटनाषक न केवल पारिस्थितिकी तंत्र अपितु पशु एवम् मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं। तदुपरान्त वैज्ञानिक समुदाय ने रसायनिक कीटनाषकों के नकारात्मक प्रभाव को कम करने के लिए इसके विकल्प का अध्ययन करना षुरू किया और विभिन्न जैव कीटनाषकों को विकसित करने में सफलता पाई, जो न केवल प्रयार्वरण हितैषी हैं, बल्कि इनका कोई…
परिचयः- हमारे देश जैसे कई विकासशील देशों में खनन एक प्रमुख आर्थिक गतिविधि हैं। संचालन चाहे छोटे हो या बड़े पैमाने पर पर्यावरण के लिए स्वाभाविक रूप से विघटनकारी हैं, भारी मात्रा में धूल के कचरे का उत्पादन जो एक हानिकारक प्रभाव डाल सकते हैं। भारत में खदान और स्टोन क्रेशिंग उद्योग निर्माण और उद्योग की बढ़ती माँगे और देश के बुनियादी ढ़ाँचे (जैसे सड़क, पुल, भवन आदि) के विकास पर वर्तमान जोर के कारण तेजी से बढ़ रहा है, हालाँकि इस औद्योगिक क्षेत्र के लिए विश्वसनीय आंकड़ों की कमी है। इसकी अनौपचारिक प्रकृति। भारत में हजारों स्टोन क्रेशर लाखों ग्रामीण प्रवासी और अकुशल श्रमिकों…
मिट्टी में लगातार रसायनों के छिड़काव एवं रासायनिक उर्वरकों की बढ़ती मांग ने पर्यावरण को प्रदूषित करने के साथ-साथ मिट्टी की उर्वरा शक्ति को भी घटाया हैद्य इन रसायनों के प्रभाव से मिट्टी को उर्वरकता प्रदान करने वाले सूक्ष्म जीवों की संख्या में अत्यधिक कमी हो गयी हैद्य जैसे कि, हवा से नाइट्रोजन खींचकर जमीन में स्थिरीकरण करनेवाले जीवाणु राइजोबियम, एजेटोबैक्टर, एजोस्पाइरलम, फास्फेट व पोटाश घोलनशील जीवाणु आदिद्य इसलिए मिट्टी में इन जीवाणुओं की संख्या बढ़ाने हेतु इनके कल्चर का उपयोग जैविक खादों के साथ मिलाकर किया जाता हैद्य किसी विशिष्ट उपयोगी जीवाणुध्कवकध्फुन्फंदध् को उचित माध्यम में (जो कि साधरणतः…
माइक्रोप्लास्टिक्स प्रमुख उभरते प्रदूषकों में से एक है और हाल ही में दुनिया भर में कई स्थानों में रिपोर्ट की गई है। माइक्रोप्लास्टिक्स और नैनो प्लास्टिक्स दोनों आमतौर पर प्लास्टिक के बड़े टुकड़ों के टूटने से बनते हैं। सूर्य और समुद्र के वातावरण से निकलने वाली अल्ट्रा-वायलेट किरणें प्लास्टिक को माइक्रोप्लास्टिक में तोड़ देती हैं। माइक्रोप्लास्टिक्स, लंबाई में 5 mm (0.2 इंच से कम) प्लास्टिक के छोटे टुकड़े हैं, जो प्लास्टिक प्रदूषण के परिणामस्वरूप पर्यावरण में होते हैं। 100 nm से नीचे के कणों को नैनो प्लास्टिक कहा जाता है। माइक्रोप्लास्टिक अनेक तरह के उत्पादों में उपस्थित होता है, जिसमें सौंदर्य प्रसाधन…
महिला सशक्तिकरण – महिलाओं का पारिवारिक बंधनों से मुक्त होकर अपने और अपने देश के बारे में सोचने की क्षमता का विकास होना ही महिला सशक्तीकरण कहलाता है महिला सशक्तिकरण का अर्थ है महिलाओं को राजनीतिक, सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक क्षेत्रों में बराबर का भागीदार बनायें भारतीय महिलाओं की सशक्तिकरण बहुत हद तक भौगोलिक (शहरी और ग्रामीण), शैक्षणिक योग्यता, और सामाजिक एकता के ऊपर निर्भर करता है। भारत में महिला सशक्तिकरण की क्यों जरूरत है- भारत में महिला सशक्तिकरण की जरूरत इसलिए पड़ी क्योंकि प्राचीन समय में भारत में लैंगिग असमानता थी और पुरूष प्रधान समाज था। महिलाओं को…
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