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    Environment

    बुंदेलखंडः संकट ग्रसित क्षेत्र

    आकाश मौर्य
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    भारत एक प्राकृतिक संसाधन सम्पन्न राष्ट्र है जिसकी भूमि पर वन, नदी, झरने, झील, सागर ,महासागर उपस्थित हैं। भारत इन संसाधनो के उपयोग से अत्यंत प्रगति कर रहा है किन्तु मानव समाज लाभ हेतु इनका निरंतर दोहन कर रहा है जिससे ये सम्पदाए पृथ्वी से तेजी से नष्ट हो रही है, ठीक उसका एक उदाहरण बुन्देलखण्ड क्षेत्र है जो पानी व सूखे की समस्या को झेल रहा है प्राचीन समय में इस क्षेत्र में लगभग 4000 जल संरचनाये हुआ करती थी वर्तमान समय में इनमे से आधी जल संरचनाये मानव समाज द्वारा दोहन व प्रबंधन न होने कारण नष्ट होने की कगार पर है जो जल संरचनाये मानव जीवन को सुखमय बनाती थी आज वही संकटग्रस्त हैं।
    बुन्देलखण्ड क्षेत्र उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश के 13 जिलो से मिलकर बना है यह ऐसा क्षेत्र है जहाँ नदियों व जल संरचनायो की भरमार है उचित प्रबंधन के अभाव, लोगो में जागरूकता की कमी व जल संरचनाओं के दोहन ने आम जन को साल भर पानी उपलब्धता के तमाम रास्ते को बंद कर दिया है इस क्षेत्र को चम्बल, सिन्धु, पहुज, बेतवा, केन, धसान, पयस्विनी आदि उद्गम स्रोत होते हुए भी विन्ध्य शैल समूह को जल विहीन माना जाता है।
    इस क्षेत्र की महिलाओं को पानी की व्यवस्था के लिए कठिन परिश्रम करना पड़ता है क्योकि पानी की सर्वाधिक आवश्यकता महिलाओं को होती है। ग्रामीण महिलाओं को पानी के लिए 3-4 घंटे समय बर्बाद करना पड़ता है सिर पर घड़े रखे हुए महिलाओं को अकसर बुदेलखंड में देखा गया है पानी के लिए लम्बी कतारे मीलो दूर पेयजल की उपलब्धता बुदेलखण्ड की दुर्दशा को बयाँ करता है इस क्षेत्र की सूखी नदियाँ व प्राचीन जल स्त्रोत इस बात की गवाही देते है इसका प्रमुख कारण छोटी छोटी नदियों का सूखना तथा वनों का विनाश होना है ये छोटी छोटी नदियाँ अधिकांशता पर्वत श्रंखलाओं से या किसी बड़े चारागाह क्षेत्र से निकलती है वर्षा के मौसम में इनमे पर्याप्त मात्रा में पानी उपलब्ध रहता है किन्तु इसके पश्चात पानी की मात्रा सीमित होती चली जाती है, इनका ढाल तीक्ष्ण होता है जिससे नदियों का पानी बहकर बड़ी नदियाँ में चला जाता हैद्य अवैज्ञानिक तरीकों से किये गए बोरबेल, तालाबो का विनष्टीकरण, जल स्रोतों की अनदेखी यह सब नदियों के सेहत के लिए हानिकारक है जब छोटी नदियाँ मरती है तो बड़ी नदियों का आस्तित्व खतरे में पड़ जाता है नदी के रास्तो को बदलने के कारण खेती योग्य भूमि भी नष्ट हो जाती है।

    बुन्देलखण्ड क्षेत्र की समस्याएं-
    भौगोलिक संरचना
    भौगोलिक आधार पर पठार के इलाके, नदियों के द्वारा कटान,बंजर व पथरीली भूमि यहाँ की कृषि को अत्यंत जटिल बनाती हैं। सिंचाई हेतु पानी का अभाव व भीषण गर्मी होने के कारण पूरा क्षेत्र कृषि में पिछड़ा हुआ है। मुख्य रूप से इस क्षेत्र से दो नदियाँ केन व बेतवा निकलती हैं जो बाद में यमुना में मिल जाती हैं।

    भू-जलस्तर में कमी
    केंद्रीय जल बोर्ड के आकड़ों के मुताबिक बुन्देलखण्ड क्षेत्र में 84 फीसदी बारिश का पानी जमीन की सतह से बह जाता है इसका प्रमुख कारण क्षेत्र में पथरीली चट्टानें व प्राचीन जल संरचनाओ का प्रबंधन न होना है जिस कारण भी इस क्षेत्र के भूगर्भ- जल स्तर में कोई सुधार नही हो पा रहा है।
    भूमि क्षरण
    भूमि क्षरण इस क्षेत्र की प्रमुख समस्या है जिसके कारण लाखों हेक्टेयर भूमि कृषि के लिए उपयुक्त नही है। क्षरण का प्रमुख कारण तीव्र हवा, वर्षा और ढलुआ जमीन का होना है इस क्षेत्र में 60 प्रतिशत लोग गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करते हैं।
    जलवायु परिवर्तन
    जलवायु परिवर्तन ने पिछले कुछ वर्षों में मौसम ने असामान्य परिवर्तन कर दिए हैं जिसने लोंगो की नाजुकता व व जोखिम को बढ़ा दिया है क्योंकि इस क्षेत्र में मानसून का देर से आना, जल्दी वापस लौट जाना, दोनों के बीच लम्बा अंतराल, कुओं का सूखना इत्यादि ने यहाँ की कृषि को बिगाड़ के रख दिया है।
    आधुनिक कृषि पद्धतियों के ज्ञान का अभाव
    बुन्देलखण्ड क्षेत्र के किसानों को कृषि की नई पद्धतियों के ज्ञान का अभाव है और यहाँ के किसान परम्परागत कृषि पध्दतियों का प्रयोग करते हैं जिससे उनकी फसल लागत अधिक आती है , लाभ कम होता है। किसानो को सूक्ष्म सिंचाई पध्दतियों के उपयोग व सरकार द्वारा दिए जा रही छूट का भी ज्ञान नही है जिस कारण किसानो को योजना का लाभ नही मिल पाता है।

    बुन्देलखण्ड की समस्या के निदान हेतु उपाय-
    नवीन कृषि पध्दतियों की जानकारी
    बुन्देलखण्ड क्षेत्र में निवास करने वाले किसानो को नवीन कृषि पध्दतियों, उन्नतशील बीज व सूक्ष्म सिंचाई पध्दतियों की जानकारी देकर जागरूक करना। जिससे किसान इन पध्दतियों को अपनाकर अपनी लागत व जल उपयोग की दर को कम कर सके। प्रति बूँद अधिक फसल योजना को बढावा देना जिससे अधिक उत्पादन प्राप्त हो।

    समुदाय को जाग्रत करना
    बुदेलखंड क्षेत्र में निवास करने वाले समुदायों को पानी की समस्यायों को हल करने के उपायों, वर्षा जल संचयन की विधियों, धूसर जल प्रबंधन आदि विषयों की जानकारी देना। जल संरक्षण सजगता को बढ़ाना इन उपायों या विधियों को अपनाकर समुदाय अपने गाँव या क्षेत्र को पानी दार बना सकता है।

    प्राचीन जल संरचनाओं के पुनर्जीवन हेतु प्रयास
    प्राचीन जल संरचनाओं के पुनर्जीवन हेतु समुदायों को जागृत करना जिससे यह क्षेत्र पुनरू पानीदार हो जाये क्यूंकि ये जल संरचनाये प्राचीन समय में लोंगो के जीवन की खुशी का प्रतीक हुआ करती थी।

    वनीकरण को बढ़ावा देना
    समुदाय के लोंगो को अपने जीवन काल में वृक्षों को लगाने के लिए प्रेरित करना जिससे वातावरण में होने वाले बदलाव को कम किया जा सके। किसानों को खेत की मेड पर फल व औषधीय वृक्षों के रोपण हेतू प्रेरित करना जिससे वायु शुद्धता के साथ-साथ आर्थिक लाभ प्राप्त हो।

    वर्षा जल संचयन पर विशेष बल देना
    बुन्देलखण्ड क्षेत्र में लोगो को वर्षा जल संचयन के लिए प्रेरित करना क्यूंकि वर्षा जल को संचय कर हम लम्बे समय तक उपयोग कर सकते हैं। वर्षा जल संचयन द्वारा भूजल स्तर में सुधार होता है तथा लम्बे समय तक तालाबो या नदियों में संचित जल का उपयोग सिंचाई व पीने के लिये जा सकता है।

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