सारांश
कृषि कार्य, ऊर्जा उत्पादन (एनर्जी प्रोडक्शन) एवं दैनिक जरूरतों के लिए साफ और सुरक्षित पानी की आवश्यकता होती है। पृथ्वी पर रहने वाला छोटा या बड़ा प्रत्येक जीव अपनी आवश्यकताओ की पूर्ति के लिए जल पर निर्भर है, जो इस कहावत को सत्यार्थ करता है “जल ही जीवन है”। जनसंख्या विस्फोट, अवांछित पर्यावरण परिवर्तन एवं मानव उपभोग में दिन प्रतिदिन वृद्धि से विश्व के लगभग एक बिलियन लोग जल संकट वाले क्षेत्रों में रहने को मजबूर हैं और वर्तमान में दुनिया की आबादी का लगभग एक चैथाई हिस्सा गंभीर जल संकट से जूझ रहा है। वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट (डब्लूआरआई) की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2025 तक इनकी संख्या करीब 3.5 बिलियन हो जाएगी जो एक गहन चिंता का विषय है। जल संकट की समस्या से भारत भी अछूता नहीं है। इस संदर्भ में नीति आयोग की वर्ष 2022 की रिपोर्ट के अनुसार भारत देश इतिहास के सबसे भयानक जल संकट से जूझ रहा है, क्योंकि भूजल श्रोतो का बहुत तेजी से खेतों की सिंचाई एवं अन्य दैनिक कार्यों हेतु दोहन किया जा रहा है। भारत के विभिन्न राज्यों एवं जिलों में तालाबो, पोखरो एवं झीलों की संख्या लगातार कम होती जा रही हैं, जो भविष्य में एक गम्भीर जल संकट की स्थिति उत्पन्न कर देगा।
परिचय
“जल है तो कल है”, “बूंद बूंद है कीमती” जैसे संदेश वर्षो से प्रसारित एवं प्रचलित होने के बावजूद आज हम उस मोड़ पर खड़े हैं, जिस स्थान से जल संकट ना केवल भारत में अपितु वैश्विक स्तर पर स्पष्ट दिखाई दे रहा है। दुनियाँ की सबसे बड़ी झीलों अरल (Aral sea), कैस्पियन सागर (Caspian sea), एवं जलाशयों का जल स्तर तेजी से घट रहा है जिससे वह सूखने की कगार पर पहुँच चुके हैं। एएफपी न्यूज एजेंसी द्वारा प्रसारित, कोलोराडो बोल्डर विश्वविद्यालय के एक अध्ययन के आधार पर ये बताया गया कि दुनिया की लगभग 25 प्रतिशत आबादी झीलों के बेसिन में रह रही है और जो लगातार सूख रही हैं। इस अध्ययन के अनुसार अगर ऐसा होता है तो वैष्विक स्तर पर लगभग दो अरब लोग प्रभावित होंगे। इस अध्ययन में 1992 से 2020 तक, 1,972 बड़ी झीलों और जलाशयों की सेटेलाइट तस्वीरों की मदद से जांच की गयी और परिणामस्वरूप यह पाया गया कि 53 प्रतिशत झीलों और जलाशयों के पानी में लगभग 22 गीगाटन वार्षिक दर से गिरावट हुई है। इसी सन्दर्भ में वेर्जिनिया विश्वविद्यालय के जलविज्ञानी फैन्गफैंग याओ के अनुसार प्राकृतिक झीलों के जल में गिरावट का 56 प्रतिशत श्रेय ग्लोबल वार्मिंग एवं मानव उपभोग हैं। ऐसा माना जा रहा है कि आने वाले कुछ सालो में मनुष्य एवं अन्य जीव जन्तुओ को जल संकट की बड़ी त्रासदी का सामना करना होगा।
विश्व के एक बिलियन से ज्यादा लोग जल संकट वाले क्षेत्रों में रहने को मजबूर हैं और दुनिया की आबादी का लगभग एक चैथाई हिस्सा गंभीर जल संकट से जूझ रहा है। वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट (WRI) की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2025 तक इनकी संख्या करीब 3.5 बिलियन हो जाएगी जो एक गहन चिंता का विषय है। प्रदूषण, पर्यावरण में बदलाव, जनसँख्या विस्फोट और ग्लेशियर्स का तेजी से पिघलना इसका एक प्रमुख कारण है। जल संकट सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के कई हिस्सों को अपनी चपेट में ले चुका है या ले रहा है। डब्लूआरआई के अनुसार विश्व के 17 देश गंभीर जल संकट से जूझ रहे हैं, जिसमें कतर सबसे ज्यादा जल संकट से परेशान देश है। कतर के बाद इस श्रंखला में लेबनान, ईरान, जॉर्डन, लीबिया, कुवैत, सऊदी अरब, इरिट्रिया, यूएई, सैन मैरिनो, बहरीन, भारत, पाकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, ओमान और बोत्सवाना देश हैं। आने वाले समय में, इन सभी देशो को ‘डे जीरो‘ का भी सामना करना पड़ सकता है। वर्ष 2021 में दक्षिण अफ्रीका के केप टाउन को लगभग ‘जीरो डे‘ घोषित कर दिया गया था। इसके पहले रोम की गंभीर स्थिति देखी जा चुकी है, जब दुर्लभ स्त्रोतों से पानी की व्यवस्था करनी पड़ी थी।
ग्लोबल वॉर्मिंग एवं जलवायु परिवर्तन के कारण एक तरफ जहां तापमान उत्तरोत्तर वृद्धि हो रही है वही दूसरी तरफ भूजल स्तर में लगातार गिरावट आ रही है। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार विश्व के लगभग दो अरब लोगों अर्थात 26 प्रतिशत आबादी अभी भी साफ और सुरक्षित पेयजल की पहुंच से दूर है। संयुक्त राष्ट्र महासचिव “एंटोनियो गुटेरेस” के अनुसार, ‘‘विश्व आंख बंद करके एक खतरनाक रास्ते पर चल रहा है, क्योंकि ‘अस्थिर जल उपयोग, प्रदूषण और अनियंत्रित ग्लोबल वार्मिंग‘ मानवता के जीवन रक्त को बहा रही है’’। पचास वर्ष के इतिहास में पहली बार संयुक्त राष्ट्र की ओर से संयुक्त राष्ट्र 2023 जल सम्मेलन का आयोजन होगा। इस सम्मलेन में विष्व के 6500 से ज्यादा विषय विशेषज्ञ एवं भूजल वैज्ञानिक शामिल होंगे। वर्ष 2022 में नेशनल इंस्टीट्यूशन फॉर ट्रान्सफॉर्मिंग इंडिया (नीति आयोग) ने कहा था कि देश इतिहास के सबसे भयानक जल संकट से जूझ रहा है। भारत में भूजल श्रोतो का बहुत तेजी से दोहन किया गया है। इसका सबसे ज्यादा उपयोग खेतों की सिंचाई के लिए किया गया है।
भारत में तालाबों, झीलों एवं अन्य जलस्रोतों का महत्व एवं वर्तमान स्थिति:
भारत एक कृषि प्रधान देश है, तकनीकी के इस युग में देष की 60 प्रतिशत जनसंख्या खेती पर ही निर्भर है, और पानी कृषि कार्यों की रीढ़ है। सांस्कृतिक विभिन्नताओं से परिपूर्ण भारत देश में तालाबों को संस्कृति का एक अभिन्न अंग माना गया है और प्राचीन काल में तालाबों की पूजा की जाती थी और तालाबों, झीलों एवं अन्य जलस्रोतों को मनुष्यों की भांति नाम भी दिए जाते थे। प्राचीन व्याकरण ग्रंथो में तालाबों को उनके स्वभाव के कारण “धरम सुभाव” कहा गया है, अर्थात् तालाब के चारों ओर संस्कृतियों का विकास एवं वृद्धि होती है। खेती और पीने के साथ साथ मनुष्य अपनी अन्य अवश्यकताओ की पूर्ति के लिए तालाबों पर निर्भर थे। दुर्भाग्य की बात ये है कि जिस देश को जल समृद्ध देश कहा जाता था वही देश आज जल संकट की भयावह स्थिति का सामना कर रहा है। जनता विकराल जल संकट की तरफ बढ़ रही है क्योंकि तालाब भूमिगत जलस्तर को बनाये रखने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे, किन्तु वर्तमान समय में तालाबों की स्थिति शोचनीय है और तालाब केवल किताबों और सरकारी फाइलों तक ही सिमटकर रह गये है। एक अनुमान के अनुसार सन् 1947 से पूर्व भारत में लगभग 24 लाख तालाब हुआ करते थे। वर्ष 2013-14 के 5वें माइनर इरीगेशन सेंसस की रिपोर्ट के अनुसार देश में लगभग 2 लाख 14 हजार 715 तालाब रह गये हैं और लगभग 22 लाख तालाब विलुप्त हो चुके हैं। जल संरक्षण की इन प्राकृतिक धरोहरों को संरक्षित ना करने के परिणामस्वरूप वर्षा जल को भूमि के अन्दर जाने का माध्यम नही मिला और वर्षा जल कुओं, पोखर, तालाबों आदि के माध्यम से भूमिगत जल को रिचार्ज करने के बजाए नालों के माध्यम से नदियों और नदियों से समुद्र में जाकर व्यर्थ होने लगा। इसके परिणामस्वरूप भूजल का स्तर तेजी से गिरने लगा। जल का कोई अन्य श्रोत ना होने के कारण मनुष्य अपनी सभी आवश्यकताओ की पूर्ती के लिए भूजल पर ही निर्भर हो गया जिसके कारण दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई, हैदराबाद, बेंगलुरु आदि बड़े शहरों में भूजल समाप्त होने की कगार पर पहुंच गया है। नीति आयोग ने अपनी रिपोर्ट में बताया, 2021 तक भारत के 21 बड़े शहरों से भूजल पूरी तरह से खत्म हो चुका है। इस स्थिति का प्रमुख कारण अपनी संस्कृति “तालाब एवं कुआ संस्कृति” को खोना है। भूमिगत जल स्तर गिरने में बढती हुई जनसँख्या ने भी एक अहम् भूमिका निभाई है। बढती हुई जनसँख्या की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए एक बड़े स्तर पर जंगल काटे गये और जंगलो के कटान ने इस समस्या को और अधिक गंभीर बना दिया। बड़े स्तर पर जंगलो के कटाव ने पर्यावरण का संतुलन बिगाड़ दिया जिसके फलस्वरूप मृदा अपरदन प्रारम्भ हो गया। भूमि में जल की कमी होने के कारण वनस्पतियों आदि को पर्याप्त नमी और जल नहीं मिला, इससे उपजाऊ भूमि मरुस्थलीकरण की चपेट में आ गई और भारत की करीब 24 प्रतिशत भूमि मरुस्थल में तब्दील हो चुकी है। भारत की लगभग 40 प्रतिशत जनता को स्वच्छ जल के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। जल शक्ति मंत्रालय के ताजा आंकड़ों के मुताबिक देश में कई स्थान ऐसे हैं जहां पानी 40 मीटर तक नीचे चला गया है। इसमें मध्यप्रदेश, राजस्थान और गुजरात जैसे राज्यों के विभिन्न गाँव एवं स्थान हैं।
भारत में तालाबों की पूर्व एवं वर्तमान स्थिति:
पहले किसानों द्वारा जल संग्रहण के लिए कुएं के पास ही वर्षा का जल एकत्रित करने के लिए एक तालाब बनाया जाता था एवं संचयित जल का प्रयोग खेती में सिचाई एवं अन्य कार्यों के लिए भी किया जाता था। और इस प्रकार के तालाब स्थानीय भूजल स्तर को सामान्य बनाये रखते थे। सामान्यतः कुएं व तालाब, खेत के उच्चतम स्थान पर स्थित होते थे, जिससे सभी दिशाओं में गुरुत्वाकर्षण के द्वारा सिंचाई के लिए जल प्रवाहित करने में सुविधा होती थी। प्राचीन काल में तालाब ग्रामीण जन जीवन का एक जरूरी हिस्सा हुआ करते थे। यह तालाब सिंचाई की जरूरतों को पूरा करने के साथ-साथ, गांव की सामाजिक ताने-बाने की धूरी थे। धार्मिक और दैनिक दोनों उद्देश्यों के लिए उनका सम्मान किया जाता था और तालाबों को बनाए रखने की हरसंभव कोशिश की जाती थी। औद्योगिक क्रांति के फलस्वरूप नलकूपों का निर्माण हुआ, क्योंकि बिजली द्वारा संचालित पम्प की सहायता से भूजल का उपयोग होने लगा। देश के कई हिस्सों में बड़े-बड़े बांधों व नहरों के जल से काफी बड़े हिस्से में सिंचाई प्रारंभ हुई। परंतु कई क्षेत्रों में बांधों का निर्माण संभव न होने के कारण किसानों द्वारा सिंचाई जल के लिए नलकूपों का उपयोग बड़े पैमाने पर किया जाने लगा। मशीनों के उपयोग से परती भूमि में भी फसलें उगाई जाने लगीं जिससे सिंचाई के जल की मात्रा में काफी वृद्धि हुई। नलकूपों का प्रयोग बड़े स्तर पर होने के कारण भूजल स्तर लगातार गिरने लगा जिससे कुओं और तालाबों की प्रासंगिकता धीरे धीरे समाप्त होती चली गई। आधुनिकता की अंधी दौड़ में स्थानीय जल निकाय जैसे कुएं, झील, पोखरे व तालाब जो कभी देश के ग्रामीण परिदृश्य की खूबसूरती हुआ करते थे, वह धीरे-धीरे विलुप्त होने लगे। शहरीकरण एवं बढ़ती जनसंख्या के कारण बढ़ रही आवासों की आवश्यकता की पूर्ति के लिए असंख्य तालाबों पर अतिक्रमण कर लिया गया। जहां पहले तालाब थे, वहां अब इमारतें, घर, खेल के मैदान या कूड़े के ढेर हैं। इन तालाबों पर अतिक्रमण करके इन पर भवन निर्माण कर कालोनियां बसाई गई हैं। एक समय पर नवाबों के शहर लखनऊ में 13 हजार 37 तालाब थे। ये तालाब करीब 49280 क्षेत्रफल में फैले हुए थे, किन्तु आज लगभग 3800 हेक्टेयर पर अतिक्रमण किया जा चुका है। वर्तमान में नोएडा में न के बराबर तालाब बचे हैं। हरिद्वार जिले के भी विभिन्न तहसीलों में करीब 1668 तालाब थे, जो अब केवल 885 रह गये हैं (तालिका-1)। कई तालाबों पर अतिक्रमण कर लोगों ने बहुमंजिला भवन बना रखे हैं। जून 2018 में नैनीताल हाईकोर्ट के वरिष्ठ न्यायमूर्ति राजीव शर्मा और न्यायमूर्ति लोकपाल सिंह की खंडपीठ ने सुनवाई करते हुए तालाबों से अतिक्रमण हटाने का आदेश दिया था। इसके बाद प्रशासन ने सक्रियता दिखाते हुए हरिद्वार तहसील में 330 में से 61 तालाबों पर, रुड़की तहसील में 680 में से 437 तालाबों पर, लक्सर तहसील में 367 में से 316 तालाबों पर और भगवानपुर तहसील में 291 में से 124 तालाबों पर अतिक्रमण होने की बात सामने आई। तहसील प्रशासन ने हरिद्वार में तीन, रुड़की में 47, लक्सर में 86 और भगवानपुर में 19 तालाबों से अतिक्रमण हटाये जाने के वाबजूद भी हरिद्वार में 58, रुड़की में 390, लक्सर में 230 और भगवानपुर में 105 तालाबों पर आज भी अतिक्रमण है। सरकार के आंकड़ों के हिसाब से झारखण्ड में करीब 10 हजार तालाब हुआ करते थे, जिसमें 7,860 तालाब ही बचे हैं। इसी प्रकार रांची जिले में करीब 900 तालाब थे, जिनकी संख्या अब मात्र 280 रह गयी हैं। राजस्थान राज्य के शहरी इलाके में तालाब और बावड़ियों की संख्या 772 है। इनमें से 443 में तो पानी है, जबकि शेष 329 बावड़िया, तालाब सूख चुके हैं या इन पर अतिक्रमण हो चुका है। जबकि छत्तीसगढ़ राज्य में एक लाख से ज्यादा तालाब थे जिनकी संख्या अब चार सौ भी नहीं रह गयी है। उत्तर प्रदेश में कुल तालाब, पोखरों की संख्या 24,354 है। जिसमें 23,309 तालाब, पोखर भरे गए हैं। जबकि पिछले पांच साल में 1045 तालाब कम हुए हैं, (तालिका-1)। यहां करीब 24 झीलें हैं, लेकिन पांच साल में 12 झीलें सूखकर खत्म हो चुकी हैं। तकरीबन यही हाल पूरे देश का है।
राज्य | जिला/राज्य | पूर्ववर्ती तालाब | वर्तमान तालाब |
उत्तराखण्ड
|
|||
हरिद्वार | 330 | 272 | |
रूरकी | 680 | 290 | |
लक्सर | 367 | 137 | |
भगवानपुर | 291 | 186 | |
झारखण्ड | झारखण्ड | 10000 | 7860 |
रांची | 900 | 280 | |
राजस्थान | राजस्थान | 772 | 443 |
उत्तर प्रदेश | उत्तर प्रदेश | 24354 | 23309 |
नीति आयोग (नेशनल इंस्टीट्यूशन फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया) की जून 2018 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत जल गुणवत्ता सूचकांक में 122 देशों में 120वें स्थान पर है और लगभग 70 प्रतिशत पानी दूषित है। कंपोजिट वाटर मैनेजमेंट इंडेक्स रिपोर्ट में कहा गया है कि महत्वपूर्ण भूजल संसाधन देश की जल आपूर्ति का 40 प्रतिशत हिस्सा है और इनका तेजी से स्वरूप बदल रहा हैं। इस रिपोर्ट के अनुसार ‘‘भारत जल संकट के अपने इतिहास में सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है। साफ पानी न मिल पाने की वजह से हर साल लगभग दो लाख लोगों की मृत्यु हो जाती हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि यह ‘‘संकट बदतर होने वाला है। वर्ष 2030 तक देश की पानी की मांग उपलब्ध आपूर्ति से दोगुनी होने का अनुमान है। जिससे करोड़ों लोगों के लिए पानी की गंभीर कमी और देश के सकल घरेलू उत्पाद में 6 प्रतिशत की कमी आने का अनुमान है। इसी संदर्भ में वर्ष 2019 में हिंदुस्तान टाइम्स की एक न्यूज के अनुसार ‘‘गौतमबुद्ध नगर प्रशासन ने 1000 तालाबों को पुनर्जीवित करने का लक्ष्य रखा था। अप्रैल 2022 को देष के प्रधानमंत्री ने भारत की स्वतंत्रता के 75वें वर्ष को यादगार बनाने के लिए देश के प्रत्येक जिले में 75 तालाबों के निर्माण का सुझाव दिया था। यह महत्वपूर्ण है क्योंकि कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय रिपोर्टों ने देश को आने वाले दशकों में गंभीर जल संकट और स्थानीय जल निकायों की सुरक्षा की आवश्यकता के बारे में चेतावनी दी है। प्रधानमंत्री ने कहा, ‘‘तापमान लगातार बढ़ने के कारण आने वाले दिनों में पानी की समस्या और गम्भीर रूप ले सकती है।
तालाबों का सूखने एवं विलुप्त होने का कारण:
तालाब एक समय पर ग्रामीण जन जीवन का अभिन्न अंग हुआ करते थे, और सांस्कृतिक धरोहर होने के कारण इनको संरक्षित भी किया जाता था, लेकिन बदलते समय के परिदृष्य में कैसे और क्यों कम होते चले गए? गम्भीरता से विचार करें तो यह समझ आता है कि इसके दो प्रमुख कारण हैं अ) निति निर्माताओ की पारंपरिक जलश्रोतो के प्रति उदासीनता एवं ब) जलवायु परिवर्तन के कारण वर्षा में आई कमी। निति निर्माताओ का पारंपरिक जलश्रोतो, जैसे कुओ, तालाबों, पोखरों एवं झीलों, के प्रति उदासीन दृष्टिकोण रहा है। यहां कहना गलत न होगा कि निति निर्माताओं के संदेशो में यह प्रमुख रूप से स्पष्ट था की पारंपरिक जल श्रोतो का जल अशुद्ध है और ग्रामीणों ने इस बात को आत्मसात कर लिया और तालाबों एवं कुओं के जल को अशुद्ध मानने लगे, जिसके परिणाम स्वरूप अपने दैनिक उपयोग के लिए भूजल पर आश्रित होते चले गये और भूजल को हैंडपंप एवं अन्य आधुनिक तकनीको का प्रयोग करते हुए दोहन करने लगे। ग्रामवासियों के मन में इन जल निकायों के लिए जो सम्मान था वह भी समाप्त होता चला गया और इनका अतिक्रमण प्रारंभ हो गया। लोगों ने इन तालाबों में कचरा डालना शुरू कर दिया। धीरे धीरे तालाबों का अस्तित्व और संस्कृति समाप्त होती चली गयी। पर्यावरण संरक्षणवादियो के अनुसार पहले गाँव से जैविक कचरा निकलता था जो भूमि की उर्वरा शक्ति को बढाता था लेकिन आज कल जैविक कचरे के स्थान पर प्लास्टिक और पॉलिथीन ने पर्यावरण को प्रदूषित कर दिया यह सारा कचरा तालाबों में डाला जा रहा है। जिससे तालाबों की स्थिति दिन प्रतिदिन दयनीय होती गयी। पर्यावरण में हो रहे बदलाव ने इस स्थिति को और दयनीय एवं गंभीर बना दिया है।
जल संकट से उबरने के उपायः
- वर्तमान समय की आवश्कता है कि जल की एक एक बूंद व्यर्थ न हो और हर बूंद का खाद्य श्रृखला में उपयोग किया जाएं।
- किसानों को ऐसे उन्नत बीजों का उपयोग करना चाहिए, जिसके लिए कम पानी की आवश्यकता हो। कृषि प्रणाली में आधुनिक तकनीकों का उपयोग करना होगा जिससे कम से कम जल व्यर्थ हो।
- जल संकट से उबरने के लिए ग्रे और ग्रीन इनफ्रास्ट्रक्चर में इनवेस्ट करना होगा। डब्लूआरआई और वर्ल्ड बैंक के रिसर्च के मुताबिक, पाइप और ट्रीटमेंट प्लांट के इंफ्रास्ट्रक्चर को तैयार करके पानी की सप्लाई और शुद्धता दोनों बेहतर की जा सकती है।
- जल संकट की गंभीरता को देखते हुए पानी को व्यर्थ करने के बजाय उसे रिसाइकल करने के बारे में सोचना चाहिए। इससे हम एक नया जल श्रोत बना सकते हैं।
जल संकट से बचने के लिए प्रमुख सरकारी योजनाएँः
देश में गिरते जल स्तर के संकट को हल करने के लिए तालाबों का कायाकल्प किया जाना अति आवश्यक है। इस दिशा में अनेको सरकारी और गैर सरकारी संगठन कार्यरत है और इस सन्दर्भ में अनेक जागरुकता कार्यक्रम भी चलाएं जा रहे हैं। इस दिषा में ग्रामीण जल निकायों को पुनर्जीवित करने के लिए केंद्र और राज्य सरकार द्वारा कई योजनाएं प्रारंभ की गई हैं। परिणामस्वरूप, देश के कई गांवों में तालाब निर्माण का कार्य प्रारंभ किया गया है। कई लोगों, किसानों ने स्वयं के स्तर पर भी तालाबों का निर्माण व सफाई का कार्य आरम्भ किया है। उत्तर प्रदेश सरकार ने भी गायब हो चुके तालाबों को पुनर्जीवित करने की योजना बनाकर इस दिशा में उल्लेखनीय कदम उठाया है। इसके साथ ही उन्होंने तालाबों को नया जीवन देने और उनके किनारों पर ग्राम वन लगाए जाने की भी बात कही है। दिलचस्प बात यह है कि उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में सामाजिक कार्यकर्ताओं और गैर-सरकारी संगठनों ने अप्रैल महीने को ‘जल उत्सव‘ के तौर पर मनाया था। महीने भर चलने वाले इस उत्सव के दौरान लगभग 2000 तालाबों को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया गया। इस उत्सव का मुख्य उद्देश्य गोमती नदी के लगातार गिरते जलस्तर को रोकना है। गाजियाबाद नगर निगम ने भी मानसून के मौसम की शुरुआत से 28 तालाबों को पुनर्जीवित करने का उल्लेखनीय कदम उठाया है। वर्ष 2020 में उत्तर प्रदेश के झांसी में महात्मा गांधी ग्रामीण गारंटी योजना (MGNREGA) के तहत कुल 406 जल निकायों को पुनर्जीवित करने की योजना थी। इसके अलावा दक्षिण भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में भी तालाबों को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया जा रहा है ताकि केरल के जिलों में भूजल के गिरते स्तर को सामान्य किया जा सके। सरकार के प्रयास से तालाब बन सकता है, लेकिन इसके रखरखाव की जिम्मेदारी जन समुदाय को उठानी होगी जिससे तालाब का अस्तित्व भी बना रहे और जन समुदाय की आस्था भी जुड़ी रहे। उत्तर प्रदेश सरकार के द्वारा चलायी गयी “खेत तालाब योजना” किसानों के लिए बेहद फायदेमंद हो सकती है। इस योजना के तहत 50 प्रतिशत का अनुदान दिया जाता है। खेत तालाब योजना के प्रमुख उद्देश्य कृषकों को जल के संरक्षण एवं समुचित प्रयोग हेतु प्रेरित करना, संचित जल का सुरक्षित उपयोग करना, वर्षा जल का जल संग्रहण करके सिंचाई हेतु प्रयोग करना और भूजल स्तर में बढ़ोत्तरी करना है।
अटल भूजल योजना
अटल भूजल योजना को 2020 में 6,000 करोड़ रुपये के परिव्यय के साथ एक केंद्रीय योजना के रूप में शुरू किया गया था (1)। इसका उद्देश्य 2020-21 से 2024-25 तक भूजल संसाधनों के प्रबंधन में सुधार करना है। जल मंत्रालय ने कहा है कि भाग लेने वाले राज्यों का निर्धारण, परामर्श, भूजल की गंभीरता, इच्छा और तैयारियों के आधार पर किया गया था। यह योजना देश में जल की कमी झेल रहे सात राज्यों में लागू की गयी है।
केन्द्र सरकार ने जल संरक्षण के लिए दो प्रमुख योजनाओं को लागू किया हैः अ) जल जीवन मिशन, ब) स्वच्छ भारत मिशन – ग्रामीण (2-3)। जल जीवन मिशन का लक्ष्य 2024 तक हर घर में नल कनेक्शन के जरिए शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराना है। इस योजना में ग्रे वाटर (प्रयुक्त जल) प्रबंधन, जल संरक्षण और वर्षा जल संचयन को भी बढ़ावा दिया जायेगा। वर्ष 2023-24 में विभाग के लिए बजटीय आवंटन का 91 प्रतिशत जल जीवन मिशन के लिए, और 9 प्रतिशत स्वच्छ भारत मिशन- ग्रामीण के लिए आवंटित है। वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिए जल जीवन मिशन को 70,000 करोड़ निरधारित किये है जो कि 2022-23 के संशोधित अनुमान से 27 प्रतिशत अधिक है। जल शक्ति मंत्रालय को 2023-24 के लिए 97,278 करोड़ आवंटित किये है। जल संसाधन विभाग को 20,055 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं, जो पिछले वर्ष के संशोधित अनुमान से 43 प्रतिशत अधिक है। पेयजल और स्वच्छता विभाग को 77,223 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं, जो 2022-23 के संशोधित अनुमानों से 29 प्रतिशत अधिक है। वर्ष 2023-24 में, कुल बजटीय आवंटन का 43 प्रतिशत प्रधानमंत्री-कृषि सिंचाई योजना (पीएमकेएसवाई), 20 प्रतिशत नमामि गंगे कार्यक्रम, 17 प्रतिशत नदी जोड़ो और 10 प्रतिशत जल संसाधन प्रबंधन को आवंटित किया गया है (5)। सरकार, जल संसाधनों के संरक्षण, उनकी गुणवत्ता में सुधार और देश में पानी का समान वितरण सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न योजनाओं को लागू कर रही है। जल संसाधन पर स्थायी समिति (2022) और सीएजी (2017, 2018) ने जल मंत्रालय के तहत कई योजनाओं के लिए बजट से सम्बन्धित मुद्दों को उठाया है, क्योंकि धन आवंटित होने के बावजूद यह योजनाएं प्रभावी रूप से उपयोग में नहीं है। जिसके कारण, लक्ष्य अधूरे रह जाते हैं, या अधिक समय और अधिक लागत के साथ प्राप्त किए जाते हैं।
भूजल पर निर्भरता कम करना
15वें वित्त आयोग ने सिफारिश की थी कि भूजल स्रोतों पर निर्भरता को कम करने के लिए सतही जल स्रोतों का अधिक से अधिक उपयोग किया जाना चाहिए, जिसके तहत एक राष्ट्रव्यापी जल शक्ति अभियान वर्ष 2019 में शुरू किया गया, है, जिसका उद्देश्य देश के 256 जल संकट वाले जिलों में जल संरक्षण और वर्षा जल संचयन को बढ़ावा देना है। इस अभियान को 2021 और 2022 में देश भर के सभी जिलों में फैलाया गया है। फरवरी 2023 तक, वर्षा जल संचयन संरचनाओं, वाटरशेड विकास और गहन वनीकरण जैसी गतिविधियों पर 23,717 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं। अप्रैल 2022 में, 15 अगस्त, 2023 तक एक लाख तालाबों का निर्माण और कायाकल्प करके, भविष्य के लिए जल संरक्षण के लिए मिशन अमृत सरोवर लॉन्च किया गया था (4)। 16 फरवरी, 2023 तक 95,000 से अधिक जगहों की पहचान की जा चुकी है। 61 प्रतिशत जगहों पर काम शुरू हो चुका है और 54 प्रतिशत काम पूरा हो चुका है। उपरोक्त वर्णित कुओं, तालाबों, झीलो एवं पोखरों की वर्तमान स्थिति एवं सरकार द्वारा चलाई जा रहीं विभिन्न परियोजनाएं और उन पर होने वाला व्यय को देखते हुए अभी भी यह प्रतीत होता है कि जल संरक्षण के लिए किये गये उपाय पर्याप्त नहीं हैं। स्थिति को दृष्टिगत रखते हुए पर्यावरण प्रबंधन, जल संरक्षण एवं कुओं, तालाबों, झीलो एवं पोखरों पर अतिक्रमण रोकने के लिए कठोर कदम उठाने होंगे। सरकार के साथ साथ जनता को भी पर्यावरण एवं जल संरक्षण के प्रति अपने कर्तव्य का अनुपालन करना चाहिए, नहीं तो वह दिन दूर नहीं जब हर इंसान के पास रहने के लिए घर तो होगा और घर में नल भी होगा, लेकिन नल में पानी नहीं होगा। इसलिए अपने भविष्य का निर्धारण हमें स्वयं करना होगा।
उपरोक्त लेख में सम्मिलित विभिन्न सन्दर्भ:
- Atal Bhujal Yojana Programme Guidelines, Ministry of JalShakti4, https://ataljal.mowr.gov.in/Ataljalimages/Atal_Bhujal_Yojana_Program_Guidelines_Ver_1.pdf.
- Jal Shakti Abhiyan, Press Information Bureau, Ministry of Jal Shakti, July 21, 2022, https://pib.gov.in/PressReleasePage.aspx?PRID=1843395.
- Jal Shakti Abhiyan Dashboard, accessed on February 13, 2022, https://jsactr.mowr.gov.in/.
- Mission Amrit Sarovar, accessed on February 16, 2023, https://amritsarovar.gov.in/login#.
- Central Ground Water Board, accessed on February 13, 2023, http://cgwb.gov.in/index.html.
“PMKSY Pradhan Mantri Krishi Sinchayee Yojana”, Press Information Bureau, Ministry of Jal Shakti, August 4, 2022, https://pib.gov.in/PressReleaseIframePage.aspx?PRID=1848470