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    Home»Environment»भारत में सिकुड़ते वेटलैंड्स: महत्व एवं संरक्षण
    Environment

    भारत में सिकुड़ते वेटलैंड्स: महत्व एवं संरक्षण

    प्रो0 नन्द लाल
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    आज दुनिया में जिस तेजी से विकास हो रहा है, उसी तेजी से पर्यावरण का हनन हो रहा है। विकास की अंधी दौड़ में हम इस कदर दौड़े जा रहे हैं कि अपने हितअनहित को भी नहीं समझ पाते। विकास ने हमें सुविधाएं प्रदान की हैं, लेकिन उनका नुकसान भी समाज और प्रकृति में देखने को मिल रहा है। आधुनिक विकास ने सबसे ज्यादा नुकसान हमारे वातावरण और आर्द्रभूमि यानी वेटलैंड्स को पहुंचाया है।

    आद्रभूमि/वेटलैंड किसे कहते हैं ?

    जलमग्न अथवा आर्द्रभूमि को वेटलैंड कहते हैं। प्राकृतिक अथवा कृत्रिम, स्थायी अथवा अस्थायी, पूर्णकालीन आर्द्र अथवा अल्पकालीन, स्थिर जल अथवा अस्थिर जल, स्वच्छ जल अथवा अस्वच्छ, लवणीय, मटमैला जल – इन सभी प्रकार के जल वाले स्थल वेटलैंड के अंतर्गत आते हैं समुद्री जल, जहां भाटा-जल की गहराई छः मीटर से अधिक नहीं हो, भी वेटलैंड कहलाता है।

    इस प्रकार जलयुक्त दलदली वन भूमि (Swamps), दलदली झाड़ी युक्त स्थल (Marsh), घास युक्त दलदल, जल प्लावित घास क्षेत्र (bogs), खनिज युक्त आर्द्रस्थल (Fens), सड़े गले पेड़-पौधों के जमाव वाली आर्द्रभूमि (Peatland), दलदल, नदी, झील, बाढ़ वाले वन, समुद्री किनारे के झाड़ीयुक्त स्थल (Mangroves) डेल्टा, धान के खेत, मूंगे  की चट्टानों के क्षेत्र, बांध, नहर, झरने, मरूस्थली झरने, ग्लेशियर, समुद्री तट, ज्वार भाटे वाला स्थल आदि सभी आर्द्र क्षेत्र (वेटलैंड) कहलाते हैं। मानवजनित कृत्रिम जल स्थल जैसे मत्स्य पालन जलाशय आदि भी वेटलैंड के अंतर्गत हैं। प्रत्येक वेटलैंड का अपना पारिस्थितिक तंत्र होता है, जैव विविधता होती है, वानस्पतिक विविधता होती है, तथा ये वेटलैंड जलजीवों, पक्षियों, आदि प्राणियों के प्राकृतिक आवास होते हैं।

    बिगबैंग के बाद पृथ्वी अस्तित्व में आई और जब यह धीरे-धीरे ठंडी हुई तो सबसे पहले एक कोशिकीय जीवों का विकास हुआ और फिर मानव सहित अन्य बहुकोशिकीय जीव विकसित हुए। जीवों के विकास की एक लंबी कहानी है और इस कहानी का सार यह है कि धरती पर सिर्फ हमारा ही अधिकार नहीं है अपितु इसके विभिन्न भागों में विद्यमान करोड़ो प्रजातियों का भी इस पर उतना ही अधिकार है जितना कि हमारा। नदियों, झीलों, समुद्रों, जंगलों और पहाड़ों में मिलने वाले विभिन्न प्रकार के पादपों एवं जीवों (समृद्ध जैव-विविधता) को देखकर हम रोमांचित हो उठते हैं। जब जल एवं स्थल दोनों स्थानों पर समृद्ध जैव-विविधता देखने को मिलती है तो सोचने वाली बात यह है कि जिस स्थान पर जलीय एवं स्थलीय जैव-विविधताओं का मिलन होता है वह जैव-विविधता की दृष्टि से अपने आप में कितना समृद्ध होगा ? दुनिया में 1758 से ज्यादा अंतर्राष्ट्रीय महत्व के वेटलैंड्स स्थल हैं। ऑस्ट्रेलिया का कोबार्ग प्रायद्वीप दुनिया का पहला नामित वेटलैंड्स है, जिसे 1974 में चुना गया था। कांगो का गिरी-तुंबा-मेनडोंबे (Ngiri-Tumba-Maindombe) और कनाडा का क्वीन मौद गल्फ (Queen Maud Gulf) दुनिया के सबसे बड़े वेटलैंड्स हैं, जो 60 हजार वर्ग किलोमीटर से अधिक क्षेत्र में फैले हैं।

    आर्द्रभूमि का वर्गीकरण: आमतौर पर स्वीकृत परिभाषा के अनुसार आर्द्रभूमि का वर्गीकरण निम्न प्रकार से है –

    समुद्री/तटीय आर्द्रभूमि Marine/Coastal Wetland

    • स्थायी उथला समुद्री जल [खाड़ी व जलडमरूमध्य (Straits)]
    • समुद्री उपज्वार जलीय बेड (Marine Subtidal Aquatic Bed)
    • कोरल रीफ
    • पथरीला समुद्री तट (Rocky Marine Shores)
    • बालू, गोटियॉ एवं कंकड़ तट (Sand, Shingle or Pebble Shores)
    • एश्चुअरी (Estuaries)
    • लैगून (Lagoon)
    • मैंग्रोव (Mangroves)

    अंतःस्थलीय आर्द्रभूमि Inland Wetland 

    • झील/तालाब (Lakes/Pond)
    • डेल्टा (Deltas)
    • स्ट्रीम/क्रीक (Stream/Creeks)
    • अनूप/कच्छ (Swamp/Marsh)
    • स्वच्छ पानी स्प्रिंग (Fresh Water Springs)

    मानव निर्मित आर्द्रभूमि Man Made Wetland 

    • एक्वाकल्चर (Aquaculture)
    • तालाब, छोटे टैंक [Ponds (Farm Ponds), Small Tanks]
    • सिंचित कृषि भूमि (Irrigated Land)
    • कैनाल (Canals)
    • अपशिष्ट पानी निवारक क्षेत्र (Wastewater Treatment Area)

    आद्रभूमि का महत्व

    यदि हम मानव शरीर के साथ जीवमंडल की तुलना करें, तो दलदल को जीवमंडल के गुर्दे कहा जा सकता है, जो एक संचय, जैविक, भू-रासायनिक, जल चक्रीय विज्ञान, जलवायु और गैस नियंत्रण कार्य करते हैं। पारिस्थितिक तंत्रों की स्थिरता बनाए रखने और उनमें उगने वाली पौधों की प्रजातियों की जैविक विविधता को संरक्षित करने के लिए वेटलैंड सिस्टम का बहुत महत्व है। दरअसल वेटलैंड (आर्द्रभूमि) एक विशिष्ट प्रकार का पारिस्थितिकीय तंत्र है तथा जैव-विविधता का एक महत्वपूर्ण अंग है। जलीय एवं स्थलीय जैव-विविधताओं का मिलन स्थल होने के कारण यहॉ वन्य प्राणी प्रजातियों व वनस्पतियों की प्रचुरता होने से वेटलैंड समृद्ध पारिस्थितिकीय तंत्र है। आज के आधुनिक समय में मानव जीवन को सबसे बड़ा खतरा जलवायु परिवर्तन से है और ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि हम अपनी जैव-विविधता का सरंक्षण करें। 40 फीसदी से अधिक प्रजातियां वेटलैंड्स में ही रहती है और उन्हें इनके जरिए भरण पोषण मिलता है।

    आर्द्रभूमि एक प्राकृतिक व कुशल कार्बन सिंक के रूप में कार्य करता है। उदाहरण के लिए दलदलीय काई भूमि के केवल 3% हिस्से पर फैली हुई है, परन्तु यह दुनिया के सभी वनों के मुकाबले दोगुनी मात्र में कार्बन को अवशोषित करने की क्षमता रखती है। आर्द्रभूमि जलवायु संबंधी आपदाओं के विरूद्ध बफर के रूप में कार्य करती हैं, जिससे जलवायु परिवर्तन के आकस्मिक प्रभावों से बचा जा सकता है।

    वेटलैंड अत्यंत उत्पादक जलीय पारिस्थितिकीय तंत्र है। वेटलैंड न केवल जल भंडारण कार्य करते हैं, अपितु बाढ़ के अतिरिक्त जल को अपने में समेट कर बाढ़ की विभीषिका को कम करते हैं। ये पर्यावर्णीय संतुलन में मनुष्य के सहायक हैं वेटलैंडस में नाना प्रकार के जीव-जंतु एक कोशिकीय से कषेरूकी जीव तक पाए जाते हैं जो एक समृद्ध जलीय जैव विविधता का प्रतिनिधित्व करते हैं। विश्व की 90% आपदाएं जल से संबंधित होती हैं तथा यह तटीय क्षेत्रों में रहने वाले 60% लोगों को बाढ़ अथवा सूनामी से प्रभावित करती है। आर्द्रभूमि एक प्राकृतिक व कुशल कार्बन सिंक के रूप में कार्य करता है। दलदलीय काई भूमि के केवल 3% हिस्से पर फैली हुई है, परन्तु यह दुनिया के सभी वनों के मुकाबले दोगुनी मात्र में कार्बन को अवशोषित करने की क्षमता रखती है। आर्द्रभूमि जलवायु संबंधी आपदाओं के विरुद्ध बफर के रूप में कार्य करती हैं, इससे जलवायु परिवर्तन के आकस्मिक प्रभावों से बचा जा सकता है।

    कमल, जो कि दुनिया के कुछ विशेष सुन्दर फूल होने के साथ ही भारत का राष्ट्रीय फूल है, आर्द्रभूमियों में ही उगता है। आर्द्रभूमियॉ अपने आस-पास अनेक ऐसे वनस्पतियों और जीवों को आश्रय प्रदान करती हैं जो आर्थिक विकास में सहायक होते हैं। आर्द्रभूमि, जैव विविधता से परिपूर्ण पारिस्थिति तंत्र का द्योतक है।

    दुनिया की तमाम बड़ी सभ्यताऍ जलीय स्रोतों के निकट ही बसती आई हैं और आज भी वेटलैंड्स विश्व में भोजन प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। वेटलैंड्स के नजदीक रहने वाले लोगों की जीविका बहुत हद तक प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इन पर निर्भर होती है। आर्द्रभूमियॉ अपने आस-पास बसी मानव बस्तियों के लिये जलावन लकड़ी, फल, वनस्पतियॉ, पोष्टिक चारा और जड़ी-बूटियों की स्त्रोत होती हैं। आर्द्रभूमि पर्यावरणीय, सामाजिक और आर्थिक सेवाओं की एक महत्वपूर्ण श्रेणी प्रदान करती हैं। कई आर्द्रभूमि महान प्राकृतिक सुंदरता के क्षेत्र हैं और आदिवासी लोगों के लिए महत्वपूर्ण हैं। आर्द्रभूमि पारिस्थितिक तंत्र के विनाश का खतरा मुख्य रूप से जल निकासी पर चल रहे काम से जुड़ा हुआ है, जिसके परिणामस्वरूप बड़ी मात्रा में उपजाऊ भूमि निकलती है, जिसका उपयोग चारागाह और बढ़ती फसलों को उगाने के लिए किया जा सकता है। सिंचाई, घरेलू और तकनीकी जरूरतों के लिए पानी खींचने के लिए आर्द्रभूमि के गहन आर्थिक उपयोग को रोकना आवश्यक है।

    आर्द्रभूमि के लिये खतरे

    • शहरीकरण : शहरी क्षेत्रों के पास उपलब्ध आर्द्रभूमि आवासीय, औद्योगिक और वाणिज्यिक सुविधाओं के विकास के दबाव का चलते घट रही है। सार्वजनिक जल आपूर्ति को संरक्षित करने के लिये शहरी आर्द्रभूमि आवश्यक है।
    • कृषि : आर्द्रभूमि के विशाल हिस्सों को धान के खेतों में बदल दिया गया है। सिंचाई के लिय बड़ी संख्या में जलाशयों, नहरों और बांधों के निर्माण ने संबंधित आर्द्रभूमि के जल चक्र विज्ञान को महत्वपूर्ण रूप से बदल दिया है।
    • प्रदूषण : आर्द्रभूमि प्राकृतिक जल फिल्टर के रूप में कार्य करती है। पीने के पानी की आपूर्ति और आर्द्रभूमि की जैविक विविधता पर औद्योगिक प्रदूषण के प्रभाव के बारे में चिंता बढ़ रही है।
    • जलवायु परिवर्तन : वायु के तापमान में वृद्धि, वर्षा में बदलाव, तूफान, सूखा और बाढ़ की आवृत्ति में वृद्धि, वायुमंडलीय कार्बन डाइॉक्साइड सांद्रता में वृद्धि और समुद्र के स्तर में वृद्धि भी आर्द्रभूमि को प्रभावित कर सकती है।
    • निकर्षण : आर्द्रभूमि या नदी तल से सामग्री को हटाना। जलधाराओं के निष्कासन से आसपास का जल स्तर कम हो जाता है और इस कारणवश नजदीक आर्द्रभूमियॉ सूखने लगती हैं।
    • Msªनिंग : वेटलैंड्स से पानी निकाला जाता है। इससे जल स्तर कम हो जाता है और आर्द्रभूमि सूख जाती है।
    • नुकसानदेह प्रजातियॉ : भारतीय आर्द्रभूमियों को जलकुंभी और साल्विनिया जैसे नुकसानदेह पौधों की प्रजातियों से खतरा है। वे जलमार्गो को अवरूद्ध करते हैं और देशी वनस्पतियों के साथ प्रतिस्पर्धा करते हैं।
    • लवणीकरण : भूजल के अत्यधिक दोहन से लवणीकरण की स्थिति उत्पन्न हुई है।

    कारखानों से निकलने वाले गंदे अवशिष्ट, खनन और भूमिगत जल के अत्यधिक दोहन कुछ ऐसे मानवीय कारण हैं, जिन्हा॓ने आर्द्रभूमि या वेटलैंड्स को अत्यधिक नुकसान पहुंचाया है। इसके साथ-साथ ही समुद्र के जल स्तर में वृद्धि, जलवायु परिवर्तन, तूफान आदि प्राकृतिक कारणों के कारण भी आर्द्रभूमि अपना वास्तविक स्वरूप खोती जा रही हैं। दुनियाभर में ताजे पेयजल के स्रोत तेजी से खत्म होते जा रहे हैं, जिससे निकट भविष्य में धरती पर मानव जीवन के लिए संकट पैदा हो सकता है। शहरीकरण, औद्योगीकरण, सड़कों, रेल मार्ग आदि के लिये जमीन की बढती मांग, कृषि के बेहद तेजी से विस्तार के चलते 1970 से 2015 के बीच 35 फीसदी जल स्रोत जैसे झील, नदियां, दलदल और खाड़ियां खत्म हुए हैं। दुनिया की इकोसिस्टम के लिए बेहद महत्वपूर्ण माने जाने वाले जलस्रोत दुनिया भर में 12 मिलियन स्क्वेयर किलोमीटर में फैले हुए हैं लेकिन 2000 के बाद इनकी संख्या में कमी होने की दर में तेजी से इजाफा हुआ है।

    वेटलैंड्स पर हुए रामसर कन्वेंशन के अध्यक्ष मार्ठा रोजास उरेगो ने दुनिया के वेटलैंड्स पर पहली रिपोर्ट तैयार की है जिसमें उन्होंने कहा है कि पृथ्वी पर जंगलों से भी तीन गुना तेजी से नमी वाली भूमि यानी वेटलैंड्स में कमी आ रही है। वैश्विक मूल्यांकन ने आर्द्रभूमि को सबसे अधिक खतरे वाले पारिस्थितिकी तंत्र के रूप में चिहिन्त किया है। यूनेस्को के अनुसार, यह दुनिया की 40% वनस्पतियों और वन्यजीवों को प्रभावित करता है जो आर्द्रभूमियों में निवास या प्रजनन करते हैं।

    दो फरवरी को विश्व आर्द्रभूमि दिवस (World Wetland Day) मनाया जाता है इसका उद्देश्य ग्लोबल वार्मिंग का सामना करने में आर्द्रभूमि जैसे दलदल तथा मंग्रोव के महत्व के बारे में जागरूकता फैलाना है। वर्ष 2022 के लिए विश्व आर्द्रभूमि दिवस की थीम ‘लोगों और प्रकृति के लिए आर्द्रभूमि कार्रवाई (Wetlands Action for People and Nature)’ है।

    दो फरवरी 1971 के ईरान में रामसर में वेटलैंड पर सम्मेलन आयोजित किया गया। वेटलैण्डस के संबंध में अद्यावधिक मानक रामसर परिपाटी (सम्मेलन) से आच्छादित हैं। जिसमें वेटलैंड को अंतरराष्ट्रीय स्तर की मान्यता देने के पूर्व प्राणि विज्ञान, पारिस्थितिकीय, सरोवर विज्ञान व जलीय महत्व पर आधारित मानकों का चिन्हीकरण किया जाता है। वर्तमान में 160 देशों/संविदा समूहों में रामसर परिपाटी स्वीकार कर ली गयी है। भारत में अब तक अंतरराष्ट्रीय महत्व के मात्र पच्चीस वेटलैंड चिन्हित व नामित है जिनका कुल क्षेत्रफल 6,77,131 हेक्टेयर है।

    भारत के वेटलैंड्स

    रामसर संधि के तहत भारत में मान्यता प्राप्त जलक्षेत्रों की संख्या 37 हो गयी है जिनका कुल क्षेत्रफल 10.67 लाख हेक्टेयर है। जिन जलक्षेत्रों को रामसर संधि के तहत मान्यता मिली है उनमें महाराष्ट्र के नंदूर मधमेश्वर, पंजाब में केशोपुर-मियानी, ब्यास और नांगल जलाशय शामिल हैं। उत्तर प्रदेश के छह जलक्षेत्रों नवाबगंज, आगरा स्थित पार्वती, समन, समसपुर, सांडी और सरसी नावर जलक्षेत्रों को यह दर्जा दिया गया है।

    भारत में रामसर नामित आर्द्रभूमि की सूची :

    रामसर नामित आर्द्रभूमि स्थल स्थान
    अष्टमुडी आर्द्रभूमि

    सस्थमकोट्टा झील

    वेम्बनाड-कोल आर्द्रभूमि

    केरल
    भितरकनिका मैंग्रोव उड़ीसा
    भोज आर्द्रभूमि मध्य प्रदेश
    चंद्र ताल

    पोंग बांध झील

    रेणुका आर्द्रभूमि

    हिमाचल प्रदेश
    चिलका झील उड़ीसा
    दीपोर बील असम
    पूर्वी कोलकाता की आर्द्रभूमि पश्चिम बंगाल
    हरिकेक आर्द्रभूमि

    कंजली आर्द्रभूमि

    रोपड़

    पंजाब
    होक्सार आर्द्रभूमि

    सुरिंदर-मंसार झील

    त्सोमोरिरी

    वूलर झील

    जम्मू और कश्मीर
    नलसरोवर पक्षी अभयारण्य गुजरात
    कोल्लेरू झील आंध्र प्रदेश
    लोकतक झील मणिपुर
    पाॅइंट कैलीमेयर वन्यजीव और पक्षी अभयारण्य तमिलनाडु
    रूद्र सागर झील त्रिपुरा
    सांभर झील राजस्थान
    ऊपरी गंगा नदी (ब्रजघाट से नरोरा तक) उत्तर प्रदेश

     

    स्रोत:https://www.jagranjosh.com/general-knowledge/list-of-ramsar-wetland-sites-in-india-in-hindi-1503661123-2

    30 जनवरी 2019 को रामसर कन्वेंशन के तहत भारतीय सुंदरबन को वेट लैंड ऑफ़ इंटरनेशनल इम्पोर्टेस का दर्जा मिल गया है।

    भारत में पश्चिम बंगाल के पूर्वी कोलकाता वेटलैंड्स सहित 26 sites को वर्तमान में अंतरराष्ट्रीय महत्व के रामसर आर्द्रभूमि स्थलों के रूप में मान्यता प्राप्त हैं। सुंदरबन रिजर्व वन 4,260 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है जिसमें 2,000 वर्ग किमी के मैंग्रोव वन और क्रीक इसे आर्द्रभूमि हेतु आदर्श स्थल (site) बनाते हैं।

    रामसर आर्द्रभूमि साइट का दर्जा पाने के बाद सुंदरबन रिजर्व वन देश में सबसे बड़ी संरक्षित आर्द्रभूमि होगी। भारत में पश्चिम बंगाल के पूर्वी कोलकाता वेटलैंड्स सहित 26 साइटें को वर्तमान में अंतरराष्ट्रीय महत्व के रामसर आर्द्रभूमि स्थलों के रूप में मान्यता प्राप्त हैं। सुंदरबन रिजर्व वन 4,260 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है जिसमें 2,000 वर्ग किमी के मैंग्रोव वन और क्रीक इसे आर्द्रभूमि हेतु आदर्श स्थल (site) बनाते हैं। यह पद्मा, मेघना और ब्रह्मपुत्र नदी घाटी के डेल्टा क्षेत्र में स्थित है। रामसर कन्र्वेशन के तहत अंतरराष्ट्रीय महत्व के आर्द्रभूमि साइट का दर्जा सुंदरबन (जो पहले से ही विश्व धरोहर स्थल है) के संरक्षण में मदद करेगा, जो जलवायु परिवर्तन और बढ़ते समुद्र स्तर के खतरे का सामना कर रहा है

    आर्द्रभूमि की सुरक्षा के लिए किए गए सरकारी प्रयास :

    • पिछले छह महीनों में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने वेटलैंड्स की बहाली के लिए चार-स्तरीय रणनीति तैयार की है, जिसमें शामिल हैं:
    • आधारभूत डेटा तैयार करना
    • वेटलैंड स्वास्थ्य कार्ड बनाना
    • गीले वेटलैंड को सूचीबद्ध करना, और
    • लक्षित एकीकृत प्रबंधन योजनाओं को तैयार करना

    आर्द्रभूमि संरक्षण और प्रबंधन अधिनियम 2010 (भारत) :-

    वर्ष 2011 में भारत सरकार ने आर्द्रभूमि संरक्षण और प्रबंधन अधिनियम 2010 की अधिसूचना जारी किया है। इस अधिनियम के तहत आर्द्रभूमियों को निम्नलिखित 6 वर्गो में बांटा गया है:

    • अंतरराष्ट्रीय महत्व की आर्द्रभूमियॉ
    • पर्यावरणीय आर्द्रभूमियॉ यथा – राष्ट्रीय उद्यान, गरान आदि
    • यूनेस्कों की विश्व धरोहर सूची में शामिल आर्द्रभूमियॉ
    • समुद्रतल से 2500 मीटर से कम ऊॅचाई की ऐसी आर्द्रभूमियॉ जो 500 हेक्टेयर से अधिक का क्षेत्रफल घेरती हों
    • समुद्रतल से 2500 मीटर से अधिक ऊॅचाई किंतु 5 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्रफल
    • ऐसी आर्द्रभूमियॉ जिनकी पहचान प्राधिकरण ने की हो

    यदि आप चाहते हैं कि धरती की उर्वरता बनी रहे, भू-गर्भ जल का स्तर पाताल न छुए, बाढ़ से कुछ हदतक ही सही, राहत मिले तो ‘वेटलैंड‘ को संरक्षित करें। दरअसल ‘वेटलैंड‘ सूखे की स्थिति में जहां पानी को बचाने में मदद करते हैं, वहीं बाढ़ के हालात में यह जलस्तर को कम करने व सूखी मिट्टी को बांध कर रखने में मददगार होते हैं और तो और ‘वेटलैंड‘ वन प्राणियों के लिए फीडिंग (भोजन), ड्र्ंकिंग (पेय) तथा ब्रीडिंग (प्रजनन) क्षेत्र हैं।

     

       प्रो0 नन्द लाल

                             जीवन विज्ञान और जैव प्रौद्योगिकी स्कूल

                      छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय, कानपुर

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