सभी हिंदी भाषियों को हिंदी दिवस की बधाई . किसी भाषा की जीवंतता और व्यापकता उसके भीतर से उपजती है . हिंदी बहुत पुरानी भाषा नहीं है , इसलिए अभी भी इसके बहुमुखी विकास की अनेक संभावनाएं शेष हैं .
उत्तम साहित्य निर्माण के साथ साथ उसका उत्कृष्ट रूप से कामकाजी होना आवश्यक होता है .ज्ञान और व्यवहार व्यापार के क्षेत्रों में अभी उत्कृष्ट हिंदी साहित्य का निर्माण होना बाकी है . इस पर हिंदी विभागों और संस्थानों के भीतर और बाहर व्यापक वांछित विमर्श नहीं हो रहा है , यह चिंता का विषय है. हिंदी के विकास के लिए उसके किसी भी गहन सरकारी संरक्षण तथा भाषा और साहित्य के संस्थानों के भीतरी और बाहरी सत्ता हासिल करने की राजनीति से उसे बचाना होगा और जनता एवं भद्र समाज के अंग्रेजी द्वारा वर्चस्व एवं सम्मान हासिल करने की प्रवृतियों से संघर्ष करना होगा . सभी मित्रों का इसके लिए सादर आवाहन .
हिंदी दिवस पर आपके समक्ष अपनी एक कविता प्रस्तुत कर हिंदी दिवस पर हिंदी में अपनी सहभागिता दर्ज करा रहा हूँ .
रिश्ते
-१-
नदी की तरह होते हैं, रिश्ते
नीचे की ओर उतरते हैं, बड़े वेग से
उथले होने लगते
अपने स्रोत की ओर
ऊँचाई पर चढ़ते समय
बहुत जल्दी ही.
।
-२-
छोटे-बड़े
गहरे-उथले
मन के
तन के
प्यार के
विचार के
भाँति-भाँति के होते हैं, रिश्ते ।
-३-
घृणा के रिश्ते
ख़त्म नही होते
विरासत की तरह
बढ़ते जाते
पीढ़ी-दर-पीढ़ी।
-४-
बहुत क्षण भंगुर होते हैं
स्वार्थ के रिश्ते
टूट जाते काम निकलते ही
काम न हो तो भी बिखर जाते
चटख कर यूँ ही
मतलब के रिश्ते।
-५-
कहने-सुनने के रिश्ते
तैरते रहते हैं उपर-उपर
कभी दिख जाते
कभी डूब जाते
घुप्प अंधेरे की रौशनी की तरह ।
-६-
हँसी-ठिठोली के रिश्ते
छेड़ देते मन को
बगल से गुजरते हुए
तालाब के पानी में
औचक में गिरे कंकड़ की तरह ।
-७-
अपनों से रिश्ते
सपनों की तरह
बार-बार सजते हैं
बार-बार टूटते हैं
चूड़ी की तरह
खनकते रहते
आस-पास
पके हुए चावल की तरह
महकते हैं
रसोई में
माथे पर चमकते हैं
दिन की रौशनी में भी
फूल की पंखुरियों की तरह
झड़ जाते
तेज आँधी में
अगली सुबह
नई सज-धज से
फिर से खिलने के लिए ।
-८-
मिट्टी से
माँ की तरह
बनते हैं, रिश्ते
पृथ्वी पैदा करती
मन में तरंगे
हवा की तरह
न दिखने वाली ।
पिता सूरज की तरह
दूर से ऊष्मित करता रहता
रिश्तों को
बिना कुछ कहे-सुने ।
-९-
कई रिश्ते होते हैं
बिना किसी नाम के
उन्हें पहचानते हैं
सिर्फ वे दोनों
जो पकड़े रहते रिश्ते को
दोनों छोर से
पूरे जतन से टूटने से बचाते हुए ।
गहरे अहसासों के बीच
साँसों के साथ-साथ
उतरते हैं, फेफड़ों में
धमनियों, शिराओं और तंतुओं के जाल में
रिश्ते
उलझते-सुलझते
मन के रसायनों को
झंकृत करते
घूमते रहते दुनिया-जहान में
देश
काल
भाषा
और भगवानों की
परवाह न करते हुए