वर्तमान सूचना प्रौद्योगिकी के युग में 3 डी प्रिंटिंग के विविध क्षेत्रों में बढ़ते प्रयोग ने इसे चर्चा का विषय बना दिया है। हालाँकि, अभी यह तकनीकी उद्विकास के स्तर पर है तथा सर्वसुलभ भी नहीं है लेकिन तकनीकी रूप से विकसित देशों ने इसे हाथों-हाथ लिया है और वे घरेलू उपकरणों के निर्माण से लेकर अंतरिक्ष के क्षेत्र तक इसका व्यापक लाभ उठाने का प्रयास कर रहे हैं। आज 3डी प्रिंटिंग तकनीकी का इस्तेमाल विविध क्षेत्रों में खासकर सुरक्षा और एयरोस्पेस के क्षेत्र में सुरक्षा संबंधी उपकरणों के विविध भागों की मरम्मत करने और उपकरण संबंधी विविध घटकों के निर्माण के लिये किया जा रहा है। 3डी प्रिंटिंग मूलतः विनिर्माण की एक तकनीक है जिसका इस्तेमाल कर त्रिविमीय (Three Dimensional) ऑब्जेक्ट का निर्माण किया जाता है। इसके लिये मूल रूप से डिजिटल स्वरूप में एक त्रिविमीय वस्तु को डिज़ाइन किया जाता है। इसके बाद 3 डी प्रिंटर के द्वारा उसे भौतिक स्वरूप में प्राप्त किया जाता है। 3 डी प्रिंटिंग में इस्तेमाल होने वाले प्रिंटर योगात्मक विनिर्माण तकनीक (Additive Manufacturing) पर आधारित होते हैं।जहाँ एक साधारण प्रिंटिंग मशीन में इंक और पन्नों की आवश्यकता होती है, वहीं इस प्रिंटिंग मशीन में प्रिंट की जाने वाली वस्तु के आकार, रंग आदि का निर्धारण कर उसी अनुरूप उसमें पदार्थ डाले जाते हैं।
3 डी प्रिंटिंग अपनी तीन नई खासियतों, खासकर कम समय, वस्तु की डिज़ाइन की स्वतंत्रता तथा कम कीमत के वजह से विनिर्माण क्षेत्र के लिये एक क्रांतिकारी बदलाव की संभाव्यता रखती है।इससे बड़ी संख्या में श्रमिक कार्यमुक्त होंगे जिन्हें अन्य क्षेत्रों में काम देकर संभावनाओं के नए द्वार खोले जा सकते हैं।स्वास्थ्य क्षेत्र में इस तकनीक का इस्तेमाल कई कार्यों, जिनमें ऊत्तक इंजीनियरिंग, प्रोस्थेटिक तथा कृत्रिम मानव अंगों के निर्माण में किया जा रहा है। इसके अलावा विनिर्माण, शिक्षा, अंतरिक्ष तथा सुरक्षा के क्षेत्र में यह क्रांतिकारी पहल साबित होगी।
वैश्विक स्तर पर वर्ष 2017 में वैश्विक 3D प्रिंटिंग बाज़ार तकरीबन 7.01 बिलियन डॉलर के स्तर पर पहुँच गया था। औद्योगिक स्तर पर किये जाने वाले 3D प्रिंटिंग के उपयोग की बात करें तो वर्ष 2019 में बाज़ार में इसकी हिस्सेदारी लगभग 80 प्रतिशत थी।वर्ष 2018 के दौरान 3D प्रिंटिंग का सर्वाधिक उपयोग हार्डवेयर, उसके पश्चात सॉफ्टवेयर तथा सबसे कम उपयोग सेवा क्षेत्र में किया गया था।वर्ष 2018 में उत्तरी अमेरिका, 3D प्रिंटिंग (Additive Manufacturing) का व्यापक स्तर पर इस्तेमाल करने के कारण बाज़ार में अपनी 37 प्रतिशत से अधिक की हिस्सेदारी के साथ पहले स्थान पर रहा।
स्विट्ज़रलैंड के वैज्ञानिकों द्वारा ‘एक सॉफ्ट सिलिकन ह्रदय’ का विकास किया गया जो लगभग मानव ह्रदय के समान ही कार्य करता है। इसके अलावा चीन तथा अमेरिका के वैज्ञानिकों ने संयुक्त प्रयास से 3D प्रिंटिंग तकनीक का प्रयोग करते हुए एम्ब्रियोनिक स्टेम कोशिका का विकास किया, वहीं यूनाइटेड किंगडम के वैज्ञानिकों ने इस तकनीक का प्रयोग करते हुए विश्व के पहले कॉर्निया का निर्माण किया है। अमेरिकी शोधकर्त्ताओं की एक टीम ने 3D प्रिंटिंग तकनीक के माध्यम से हथेली पर समा जाने वाली एक ‘स्पंज’ जैसी संरचना तैयार की है, जो प्रदूषण को कम करने में कारगर साबित हो सकती है। शोधकर्त्ताओं की एक टीम ने 3D प्रिंटिंग प्रक्रिया के दौरान रासायनिक एजेंट टाईटेनियम डाईऑक्साइड के नैनो कणों को मिलाकर एक ‘स्पंज’ के समान प्लास्टिक साँचे का निर्माण किया। जिसमें पानी, वायु और कृषि स्रोतों से प्रदूषण को समाप्त करने की क्षमता है।
भारत में विनिर्माण क्षमताओं को बढ़ाने के उद्देश्य से देश के प्रमुख विनिर्माताओं ने विदेशी तकनीकी फर्मों के साथ 3D प्रिंटिंग असेंबली लाइन और वितरण केंद्रों की स्थापना की है।Price Waterhouse Coopers (PWC) की ‘द ग्लोबल इंडस्ट्री 4.0’ शीर्षक से जारी रिपोर्ट में इस बात का ज़िक्र किया गया था कि वर्ष 2016 के दौरान योगात्मक विनिर्माण तकनीकों में लगभग 27 प्रतिशत उद्योगों ने निवेश किया है जो इस बात का संकेत करता है कि भारत के औद्योगिक क्षेत्र में 3D प्रिंटिंग के व्यापक प्रयोग की संभावना है।
वर्तमान में भारत सबसे तीव्र गति से विकास करने वाला विकासशील देश है जहाँ निवेश के अवसरों को बढ़ाने एवं देश की विनिर्माण क्षमताओं को मज़बूती प्रदान करने के उद्देश्य से ‘मेक इन इंडिया’, ‘डिजिटल इंडिया’ तथा ‘स्किल इंडिया’ जैसी पहलें आरंभ की गई हैं जिसमें 3D प्रिंटिंग महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। इसका उपयोग छोटे शहरों में औद्योगिक विकास को बढ़ावा देने की दिशा में महत्त्वपूर्ण होगा तथा पारंपरिक और मध्यम उद्यमों के क्षेत्र में इस तकनीक का उपयोग न केवल कम लागत और अधिक कुशल साबित होगा बल्कि समय की भी बचत होगी। विमानन और मोटर वाहन जैसे क्षेत्रों में इस तकनीक के उपयोग से परिवहन क्षेत्र में क्रांति लाई जा सकती है जिससे न केवल उत्पादन क्षमता में वृद्धि होगी बल्कि उत्पादित वस्तु की गुणवत्ता और निर्माण के दौरान पर्यावरण पर पड़ने वाले विपरीत प्रभावों में भी कमी आएगी जो देश के पर्यावरण के संदर्भ में वैश्विक प्रतिबद्धताओं के अनुरूप भी होगा।
3डी प्रिंटिंग से कई लाभ हैं –
1.कम लागत– 3 प्रिंटिंग के द्वारा पारंपरिक तरीकों की तुलना में कम लागत पर उत्पादों का निर्माण किया जा सकता है।
2.समय की बचत– 3डी प्रिंटिंग के द्वारा कम समय में गुणवत्तापूर्ण कार्य किया जा सकता है। यह कार्य की दक्षता में वृद्धि करने में सक्षम है।
3.अति कुशल- 3डी प्रिंटिंग के द्वारा उत्पन्न प्रोटोटाइप का निर्माण बहुत आसानी और तीव्रता के साथ किया जा सकता है।
4.लचीलापन– 3 डी प्रिंटिंग के लिये विभिन्न प्रकार की सामग्रियाँ प्रयोग में लाई जा सकती हैं। इससे विभिन्न प्रकार के प्रोटोटाइप और उत्पादों को प्रिंट करना आसान हो जाता है।
5.टिकाऊ और उच्च गुणवत्ता– उत्पाद नमी को अवशोषित नहीं करते हैं, जिससे वह लंबे समय तक प्रयोग में रहते हैं।
3 डी प्रिंटिंग से संबंधित चुनौतियों की बात की जाए तो 3D प्रिंटरों में विविधता के कारण उत्पादों के निर्माण में गुणवत्ता की भिन्नता आ जाएगी। साथ ही 3डी प्रिंटरों में उत्पादों की गुणवत्ता को लेकर एक आदर्श मानक का अभाव है।इन प्रिंटरों के अंतर्गत उत्पादों के निर्माण में सर्वाधिक मात्र में प्लास्टिक का इस्तेमाल किया जाता है तथा इसमें बड़े स्तर पर बिजली की खपत होती है जिसे किसी भी दृष्टि से पर्यावरण के लिहाज़ से अच्छा नहीं कहा जा सकता है।देश में न केवल लोगों में इस प्रौद्योगिकी के विषय में जागरूकता का अभाव है बल्कि इससे संबंधित शोध कार्यों का भी अभाव है। आयात लागत का अधिक होना, रोज़गार में कमी तथा 3डी प्रिंटर से संबंधित घरेलू निर्माताओं की सीमित संख्या भी देश में 3 डी प्रिंटिंग की चुनौतियों को उजागर करती हैं।
हमें यह नहीं भूलना चाहिये कि अभी यह तकनीकी अपने उद्विकास के आरंभिक चरण में है तथा विकास के क्रम में इससे संबंधित चुनौतियों का समाधान भी निकला जाएगा। भारत को 3 डी जैसी उन्नत तकनीकी का लाभ लेने के लिये तकनीकी शिक्षा का व्यापक स्तर पर प्रसार करना होगा तथा शोध एवं विकास कार्यों हेतु पर्याप्त वित्त की उपलब्धता सुनिश्चित करनी होगी।निश्चित ही 3डी प्रिंटिंग के उपयोग का क्षेत्र व्यापक है जिसमें घरेलू से लेकर अंतरिक्ष तक विभिन्न आयाम शामिल हैं तथा स्वास्थ्य, शिक्षा, सुरक्षा एवं अंतरिक्ष जैसे क्षेत्रों में अपार संभावनाएँ मौज़ूद हैं।