जल सभी प्राणियों के जीवन के लिए एक अनिवार्य संसाधन है अतः जल का शुद्ध होना आवश्यक है। जल में अनेक कार्बनिक, अकार्बनिक पदार्थ, खनिज तत्त्व व गैसे घुली होती है। यदि इन तत्वों की मात्रा आवश्यकता से अधिक हो जाती है तो वो जल हानिकारक हो जाता है। वर्तमान समय में लाखों लोग स्वच्छ पानी की अपर्याप्त पहुंच के कारण जल संकट से पीड़ित हैं। जल दूषित होने का प्रमुख कारण जल संसाधनों का भूगर्भीय और मानवजनित प्रदूषण है।
विश्व के कई देश जैसे अमेरिका, कनाडा, मेक्सिको, चीन, जापान, और ताइवान के प्राकृतिक जल स्त्रोत आर्सेनिक नामक विषैले धातु से प्रभावित पाए गए है । आर्सेनिक एक धातु तत्व है, जो प्रायः धरती की ऊपरी सतह पर पाया जाता है । आर्सेनिक का हिंदी रूपांतर ‘संखिया’ भी है । आर्सेनिक का प्रभाव दुनिया भर में मानव जाति के लिए एक गंभीर स्वास्थ्य खतरा है, जिसमें इस तत्व की अलग-अलग प्रभावकारिता के कारण हृदय संबंधी विकार, चर्म सम्बन्धी समस्या, श्वसन संबंधी रोग और कैंसर का कारण बताया जा रहा है। आर्सेनिक की विषाक्तता से प्रभावित होने वाली अधिकांश आबादी गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करती है । कुपोषण और निरक्षरता जैसी सामाजिक समस्याओ से पीड़ित ये निम्न वर्ग जल में घुले आर्सेनिक की विषाक्तता और उससे जुड़े उपचारो से सर्वथा अनभिज्ञ होता है । आर्सेनिक ग्रसित मानव जीवन को सामाजिक बहिष्कार का भी सामना करना पड़ता है ।
हाल ही में हुए एक शोध के अनुसार 100 से अधिक देशों में रहने वाले लगभग 30 करोड़ लोग आर्सेनिक विषाक्तता के प्रभाव में रह रहे हैं । पिछले दो दशकों में विशेष रूप से दक्षिण एशिया छेत्र में भूजल का आर्सेनिक से दूषित होना एक सार्वजनिक स्वास्थ्य चिकित्सा का विषय बन गया है। भारत मुख्य रूप से इस समस्या से जूझ रहा है।
भारत में, आठ राज्यों को आर्सेनिक दूषित भूजल से प्रभावित होने की सूचना मिली है, जिनमें से छह राज्य गंगा-ब्रह्मपुत्र तटीय छेत्रो में स्थित हैं, पश्चिम बंगाल सबसे अधिक प्रभावित राज्य है जिसमें लगभग 7 करोड़ लोग प्रभावित हैं। भारतीय संस्था ‘भारतीय मानक ब्यूरो’ ने पेय जल में आर्सेनिक की प्रभावकारिता सीमा १० पीपीबी तय की है । भारत सरकार द्वारा बीते कुछ वर्षो में आर्सेनिक शमन की दिशा में प्रमुख कदम लिए गए है । केंद्रीय सरकार के जल शक्ति मंत्रालय में ‘पेय जल और स्वच्छता विभाग’ द्वारा संचालित ‘नेशनल रूरल ड्रिंकिंग वाटर प्रोग्राम’ और ‘इंटीग्रेटेड मैनेजमेंट इन्फॉर्मेशन सिस्टम’ परियोजनाएं, देश के ग्रामीण और प्रभावित क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को सुरक्षित पेयजल उपलब्ध कराने की दिशा में प्रमुख प्रयास है । इन परियोजनाओं के अंतर्गत केंद्रीय और राज्य सरकारे एकसाथ मिल कर, सामाजिक सहभाग द्वारा पानी की गुणवत्ता और सभी पेयजल स्रोतों का विश्लेषण कर रही है तथा प्रभावित बस्तियों में सुरक्षित पानी उपलब्ध कराने का प्रयत्न कर रही है । सरकार की इस मुहीम में कई देशी और विदेशी कम्पनिया भी अपना योगदान दे रही है । इस कार्यप्रणाली के अंतर्गत आर्सेनिक शमन की विभिन्न तकनीक उन प्रभावित क्षेत्रों में उपयोग की जा रहीं है जहां सुरक्षित पानी के अन्य विकल्प उपलब्ध नहीं हैं ।
कई अध्ययनों से पता चलता है कि आर्सेनिक का कृषि पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है । भारत एक कृषि प्रधान देश है। वर्षा की निर्भरता से मुक्त होने के लिए किसान सिचाई के जल की आपूर्ति भूजल से कर लेता है। सिंचाई और अन्य कृषि प्रथाओं के लिए आर्सेनिक दूषित भूजल का उपयोग मिट्टी के स्वास्थ्य और फसल उत्पादन पर हानिकारक प्रभाव डालता है। आर्सेनिक प्रभावित क्षेत्रों में उत्पादित मिट्टी और फसलों में आर्सेनिक संचय को कम करने के लिए विभिन्न शमन उपायों को तैयार किया गया है। इन प्रयासों में निम्न आर्सेनिक संचय करने वाली पौधों की किस्मों का चयन और विकास करना, सतह के पानी और गहरे सुरक्षित जल स्रोतों को अपनाना, वैकल्पिक सिंचाई प्रणाली, जैविक खाद और अकार्बनिक उर्वरकों का इस्तेमाल, मिट्टी का पुनर्वास, और सूक्ष्मजीवों को नियोजित करना, शामिल हैं। यद्यपि ये सभी उपरोक्त उपाय सकारात्मक प्रभाव दिखाते हैं, लेकिन विभिन्न सामाजिक, आर्थिक, पर्यावरणीय और तकनीकी मुद्दे इन सुझावों की सफलता में बाधक बन जाते है। इसलिए इन बहुआयामी मुद्दों को समझने और संबोधित करने की तत्काल आवश्यकता है।
बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय लखनऊ के पर्वावरण विज्ञानं विभाग में प्रोफेसर राणा प्रताप सिंह की पर्यवेक्षता में विभिन्न आर्सेनिक शमन उपायों की विवेचना की जा रही है और कृषि जैवविविधता में सुधार करने और आर्सेनिक प्रभावित क्षेत्रों की समस्याओं को दूर करने के लिए नीति निर्माण के प्रयास किये जा रहे है। सुद्रिंड और सफल नीतियों के दूरगामी परिणाम मानव जीवन को स्वस्थ बनाने में श्रेष्ठकर होंगे ।