देश इस समय गंभीर वैश्विक महामारी (COVID-19) से गुजर रहा है जिसका समाधान अभी दूर-दूर तक भी नहीं दिख रहा है| सिर्फ शारीरिक दूरी ही एक मात्र उपाय है “दो गज की दूरी बहुत ही जरूरी“ जिससे आप अपने आप को सुरक्षित कर सकते है और साथ ही संक्रमण को फैलने से भी रोक सकते है| संक्रमण के खतरों को कम करने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा, और साथ ही भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय ने समय-समय पर अपने आप को वैश्विक महामारी से बचने के लिए जो दिशानिर्देशों दिए गए है| उनके अनुसार नियमित रूप और अच्छी तरह से अपने हाथों को कम से कम बीस सेकेंड के लिए साबुन और पानी से धोना आवश्यक है। सैनिटाइजर (एंटी-माइक्रोबियल एजेंट) का उपयोग करके भी हाथों को साफ और कीटाणुरहित किया जा सकता है|
भारत में मुख्यतः उद्योगों और घरो से निकलने वाला कचरा सबसे ज्यादा मात्रा में निकलता था परन्तु आज की परिस्थितियों को देखते हुए जब ज्यादातर उद्योग एक तिहाई या आधी उत्पादक क्षमता के साथ कार्य कर रहे है जिस वजह से उनसे निकलने वाला कचरा भी कम निकल रहा है
बाज़ार में भिन्न-भिन्न प्रकार के साबुन मौजूद है, आजकल साबुन भी सफाई के प्रकार से अलग-अलग है, यह भी एक मुख्य कारण है की साबुन से होने वाला प्रदुषण सुबह से शाम तक अलग-अलग तरीको से होता ही रहता है
आज इस महामारी के समय साबुन का उपयोग सुरक्षित रहने के लिए (स्वस्थ व्यक्ति, संक्रमित व्यक्ति, एवं स्वास्थ्य कर्मी) एवं संक्रमण से बचने के लिए हो रहा है| covid से पहले भारत में लगभग 3.0 किलोग्राम साबुन प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष खपत थी लेकिन आज यह बढकर लगभग 5 किलोग्राम साबुन प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष हो चुकी है, इस कारण से जलाशयो में बढ़ता साबुन एवं sanitizer का स्तर गंभीर चिंता का विषय बनता जा रहा है| परन्तु इसका असर प्रत्यक्ष रूप से जल संशोधित सयंत्रो पर भी देखा जा सकता है| इस कारण से उपयोग किये गए पानी का भौतिक व रासायनिक पैरामीटर्स बदल रहे है जैसे pH, BOD/COD आदि जो जल सयंत्रो पर भयंकर प्रभाव डाल रहे है
साबुन की मात्रा अधिक होने के कारण जलाशयो में घुली हुई ऑक्सीजन की मात्रा ३-4 मिलीग्राम हो जाती है और इससे जल में रहने वाले जीवो पर दुस्प्रभाव पड़ रहा है , इस घटना को इत्रोफिकेशन कहा जाता है
यदि इस संशोधित जल का प्रयोग कृषि में किया गया तो साबुन की बढती हुई मात्रा मिटटी की रासायनिक संरचना पर गंभीर प्रभाव होगा इसके साथ ही इस जमीन पर उगाई जाने वाली फसलो पर भी बुरा प्रभाव पड़ेगा
साबुन में फॉस्फेट की मात्रा अधिक होने की वजह से और साथ ही इससे उत्सर्जित रसायन नॉन-बायोडिग्रेडेबल होने की वजह से जल स्रोतों एवं पर्यावरण के लिए खतरा पैदा कर रहे है जल वैज्ञानिको के अनुसार डिटर्जेंट में फॉस्फेट का स्तर नियंत्रित करना आवश्यक है, नए-नए शोध से पता चला है की इलेक्ट्रोकिनेटिक तकनीक द्वारा इसको प्रदूषित जल से निकला जा सकता है आने वाले समय में इस तरह के शोध को आगे बढ़ाने की बहुत जरूरत है
हर्बल साबुन का प्रयोग ज्यादा से ज्यादा करना होगा जिस की वजह से जल को प्रदूषित होने से रोका जा सकता है, इस दिशा में नए शोध करने होंगे और साथ ही इस को नियंत्रित करने की लिए सख्त कदम उठाने होंगे, और समय रहते भारत देश को अपनी एक पोलिसी बनानी होगी जिससे नियंत्रित मात्रा में फॉस्फेट निष्काषित हो सके| अगर ज्यादा से ज्यादा हर्बल एंटी- माइक्रोबियल एजेंट्स या सेनिटाईज़र का प्रयोग करने से साबुन से होने वाले प्रदुषण से भी बचा जा सकता है