इक्कीसवीं सदी में कृषि खाद्यानों के उत्पादन के क्षे़़त्र में एवं देश को आत्मनिर्भरता की स्थिति तक पहुंचाने में उन्नत किस्म के बीजों, उर्वरकों, सिंचाई एवं पौध संरक्षण का उल्लेखनीय योगदान है। जैसा कि विदित है, विभिन्न फसलें पोषक तत्व मृदा से लेती रहती है, फलस्वरुप कृषि पुनरावर्तन प्रणाली में भूमि से पोषक तत्वों का ह्यस होता रहता है। ज्ञातव्य है कि एक टन दानें के लिए (भूसे सहित) मिट्टी से औसतन 32 किग्रा. नाइट्रªोजन, 9 किग्रा. फास्फोरस और 45 किग्रा.पोटेशियम लिया जाता है।
टिकाऊ व प्रमाणिक कृषि के लिए जरुरी है कि मृदा में जितनें पोषक तत्वों का ह्यस हो मृदा को किसी न किसी रुप में वापिस कर दिया जाय ताकि मृदा की उर्वरक क्षमता बनी रहे। स्वस्थ भूमि , स्वस्थ भोजन, स्वस्थ शरीर एवं स्वस्थ मन तथा जैसा अन्न, वैसा मन की कल्पना तभी साकार होगी।
वर्तमान में रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग से एन.पी.के.का अनुपात बिगड़ गया है। जबकी मृदा उर्वरता, उसमें सभी पोषक तत्वों (18 पोषक तत्वों) के सही अनुपात की उपस्थ्तिि पर निर्भर रहती है। रासायनिक उर्वरकों के अत्यधिक प्रयोग से ऐसा प्रतीत होता है कि भूमि की उर्वरता बनाए रखना अत्यधिक कठिन होता जा रहा है। फसलों कों अधिक नत्रजन (पोषक तत्व) की आवश्यकता होती है और भूमि में डाले गये रासायनिक उर्वरकों में निहित नत्रजन का 40-45 प्रतिशत ही फसल उपयोग कर पाती है, शेष पानी के साथ बह जाता है या वायुमण्डल में मिल जाता है।
वर्मी कम्पोस्ट: एक लाभदायक व्यवसाय
केंचुआ किसान का एक अच्छा मित्र है। केंचुआ व अन्य कार्बनिक पदार्थों जैसे- घरेलु कचरा, शहरी कचरा, कृषि अवशेष, खरपतवार, पशुओं का गोबर, छिलकें जो गल सकें आदि के मिश्रण के पश्चात् केंचुओं से विसर्जित पदार्थ को वर्मीकम्पोस्ट कहतें है। वर्मीकम्पोस्ट न सिर्फ केंचुओं द्वारा बल्कि कई सुक्ष्म जीवाणु जैसे बैक्टीरिया, एक्टिनोमाइसिटिज, प्रोटोजोआ, फॅफूद आदि के द्वारा बनता है जो फसलों, सब्जियों, पौधों व वृक्षों की बढवार और रोगों से रक्षा के लिए पूर्ण रुप से प्राकृतिक एवं संतुलित खाद है। केंचुओं के पालन को वर्मीकल्चर कहते है।
वर्मीकम्पोस्ट में नत्रजन, फास्फोरस, पोटाश के अतिरिक्त पौधों की वृद्धि एवं विकास में सहायक अनेक लाभदायक सूक्ष्म तत्व एवं जीवाणु, हार्मोन (आक्सिन एवं साइटोकाइनिन) और अनेक एन्जाईम भी पाये जातें हैं। इसमें हयूमिक एसिड भी होता है, जो भूमि की लवणता को कम करता है।
वर्मीकम्पोस्ट तैयार करने के लिए सतही केचुए, जो मृदा कम कार्बनिक पदार्थ अधिक खातें हैं, प्रयोग किए जाते है। इन्हे एपीगीज के नाम से भी जाना जाता है। ये दो प्रकार के होते है। एपिजाईक(सतह पर पाये जाने वाले) एवं एनिसिक ( सतह के अन्दर पाये जाने वाले )ं। इसेनिया, फोटिडा एवं यूड्रिलस यूजेनी प्रजाति के केचुओं का प्रयोग कृषि अवशेष एवं गोबर से वर्मीकम्पोस्ट बनाने में अधिकतर किया जाता है। इसका वजन 0.3-0.9 ग्राम एवं लम्बाई 3 इंच होती है। इन्हे रेडवर्म भी कहते है। इसके अतिािक्त अन्य प्रजातियां भी है, जो वर्मीकम्पोस्ट में प्रयोग की जाती है परन्तु ये लाल केंचुओं से कम प्रभावी हैं।
वर्मीकम्पोस्ट क्यों ?
गोबर खाद की तुलना से सवा गुना अधिक पोषक तत्व पाये जातें है। अनेक लाभदायक सूक्ष्म पोषक तत्व एवं जीवाणु, हार्मोन और एन्जाइम पाये जाते है जो पौधों के सम्पूर्ण विकास में सहायक है। इसमें पाया जाने वाला हयुमिक एसिड, भूमि के पी.एच.मान को संतूलित रखता है। वनस्पतिक पदार्थो को 80-85 दिन में ही खाद में बदल देता है। इसके प्रयेग से मिट्टी में वास करने वाले केंचुए भी सक्रिय होते है। मिट्टी की भौतिक, रासायनिक और जैेविक गुणवत्ता में सुधार आता है। बंजर भूमि सुधार, मछली पालन और नर्सरी में भी वर्मीकम्पोस्ट उपयुक्त है। इस प्रकार से तैयार खाद में दीमक का प्रकोप नही होता है। इसके प्रयोग से मिट्टी की जल ग्रहण क्षमता में वृद्धि होती है। इसमे पोषक तत्व घुलनशील अवस्था में उपस्थित होतें है। इसमें लिग्निन एवं लिग्नाइन नामक तत्व भी होते है जो पौधों की रोग प्रतिरोधक शक्ति बढाकर फसल का उत्पादन बढाते है। मृदा संरचना तथा वायु संचार में सुधार हो जाता है। ग्रामीण क्षेत्र में बडे पैमाने पर रोजगार उपलब्ध हो सकता है। जलकुम्भी की समस्या का स्थायी निदान है।इसके प्रयोग से नाइट्रोजन तत्व की भूमि में लीचींग नही होती है और प्रयुक्त रसायनिक खाद के नत्रजन की भी लीचींग नही होती है।
पोषण क्षमता
जीवांश कार्बन : 20-25 प्रतिशत मैगनिशियम : 0.15 प्रतिशत
नत्रजन : 1.2-2.5 प्रतिशत लोहा (आयरन) : 175.2 पी.पी.एम.
फास्फोरस : 1.8-2.0 प्रतिशत मैगनीज : 96.51 पी.पी.एम.
पोटाश : 0.5-1.2 प्रतिशत जिंक : 24.43 पी.पी.एम.
कैल्शियम : 0.44 प्रतिशत कॉपर (तांबा) : 4.89 पी.पी.एम
वर्मी कम्पोस्ट बनाने की विधि
- खाद बनाने का कार्य गढ्ढे, लकडी की पेटी, प्लास्टिक क्रेट या किसी प्रकार के कन्टेनर में किया जा सकता है। गढ्ढे या पेटी की गहराई 1 मीटर से कम रखे। लकडी या प्लास्टिक की पेटी में नीचे 8-10 छेद जल निकास हेतु बनाएं।
- 10 फीट लम्बा ग 2ण्5 फीट चौडा ग 1ण्5 फीट गहरा गढ्ढा उँचाई तथा छायादार जगह पर बना लें।
- स्बसे निचली सतह पर 3-3.5 सेमी0 मोटी ईंट या पत्थर की गिट्टी बिछायें।
- गिट्टी की परत के ऊपर 3-3.5 सेमी0 मोरंग या बालू बिछायें।
- गिट्टी की परत के ऊपर 15 सेमी0 अच्छी दोमट मिट्टी की परत बनायें।
- इस मिट्टी को पानी छिडकर नम कर लें।
- इसके बाद एक किग्रा0 केंचुए (एपीजाईक तथा एनीसिक) बराबर की संख्या में डाल दें।
- नम मिट्टी के ऊपर गोबर के डेर बनाकर रख दें।
- गोबर के ऊपर 5-10 सेमी0 पुआल/सूखी पत्तियाँ डाल दें।
- इस इकाई में बराबर 20-25 दिन तक पानी का छिड़काव करें।
- 26 दिन से प्रति सप्ताह दो बार लगभग 5-10 सेमी0 कचरे की तह बनायें तथा गोबर का ढेर बना कर रख दें। यह प्रक्रिया दोहराते रहे जब तक कि गड्ढ़ा भर न जाय।
- इसे हफ्ते में एक बार पलटते रहें।
- इसमें रोज पानी का छिड़काव करें तथा जब गड्ढ़ा भर जाय तो कचरा डालना बन्द कर दें।
- 80 से 85 दिन बाद जब वर्मी कम्पोस्ट बन जाये तो 2-3 दिन तक पानी का छिड़काव बन्द कर दें।
- डसके बाद खाद निकाल कर छाया में ढेर लगा दें और हल्का सुखने के बाद 2 मिमी0 छन्ने से छान लें। इस तैयार खाद में 20-25 प्रतिशत नमी होनी चाहिए।
- छनी हुई खाद को प्लास्टिक के थैले में आवश्यकता अनुसार भर लें।
वर्मी कम्पोस्ट निकालने की विधि
- खाद निकालने के 2-3 दिन पूर्व पानी का छिड़काव बन्द कर दें, इससे केंचुए गड्ढे की तली में चले जायेगें।
- ऊपर से खाद को एक से दो दिन बाद हाथ से अलग कर लें या मोरंग चलाने वाले छन्ने से छान लें, तथा फर्श में नीचे पड़े केंचुओं को पुनः गड्ढ़े में डाल दें।
- खाद को निकाल कर फर्श या पालीथिन पर ढेर बना दें।
- छनी खाद को प्लास्टिक के थैलों में भर कर रखें।
प्रयोग विधि एवं मात्रा
वर्मी कम्पोस्ट को फसलों की बुआई या रोपाई से पूर्व और खड़ी फसल में डाल सकतें है। खाद्यान फसलों में 5-6 टन प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें। 2.5 से 3 टन प्रति हेक्टेयर खेत की तैयारी के वक्त प्रयोग करें।1.2 से 1.5 टन प्रति हेक्टेयर फसल की दुधिया अवस्था पर प्रयोग करें। फलदार वृक्षों में 1-10 किग्रा., आवश्यकतानुसार थाले में प्रयोग करें। गमलों में 100 ग्राम प्रति गमले की दर से प्रयोग करें। सब्जी फसलों में 10-12 टन प्रति हेक्टेयर प्रयोग करते है।
केंचुआ खाद व रासायनिक खाद की तुलना
केंचुआ खादः
अत्यधिक सस्ता होता है। मृदा की उर्वरा शक्ति को बढ़ाता है। जल, जमीन व हवा स्वच्छ होतें है। पानी की आवश्यकता कम होती है। कीटनाशकों के प्रयोग में कमी। फसलो, फलो व सब्जियों के स्वाद में बढ़ोत्तरी। सभी तत्व तथा सुक्ष्म तत्व मौजूद होतें है। इसलिए भूमि का संतुिलत भोजन है। किसान अपने खेत पर स्वयं पैदा कर सकता है। रोजगारपरक है।
रासायनिक खाद
रासायनिक खाद काफी मंहगे है। निरन्तर उपयोग से उर्वराशक्ति कम होती है। प्रदुषण बढ़ाता है। खेती के लिए अधिक पानी की आवश्यकता होती है। कीटनाशकों की अधिक आवश्यकता पड़ती है। स्वाद में कमी आती है। प्रत्येक खाद में केवल एक ही तत्व होता है। विदेशी मुद्रा खर्च होती है। बेरोजगारी लाता है।
सावधानियां
- ताजा गोबर का इस्तेमाल नही करना चाहिए क्योेंकि सड़ने से ऊर्जा निकलती है और गर्मी से केचुए मर जाते है।
- बेड में नमी, छाया, 8-30 डिग्री तक तापमान तथा हवा का प्रवाह बनाये रखें।
- केंचुओं की मेढ़क, सांप, चिड़िया, कौवा, छिपकली एवं लाल चीटीं आदि शत्रुओं से रक्षा करें।
- कूड़ा- कचरा भी गीला व ठण्डा कर केचुओं के भोजन के रुप में प्रयोग करें।
- बेड की गुडाई/पलटाई प्रत्येक सप्ताह करें, जिससे पोलापन बना रहे तथा केचुओं को हवा मिले।
- गड्ढे की भराई धीरे-धीरे करें नही तो तापमान बढ़ने से केचुओं को हानि होती है। गडढ़ा छायादार-ऊॅचाई पर बना हो।
वर्मीवाश: एक तरल जैविक खाद एवं प्रभावकारी कीटनाशक
वर्मीवाश वर्मीकम्पोस्ट विधि पर आधारित एक तरल खाद है, जो छिड़काव के रुप में प्रयोग किया जाता है। इसमें गौण व सुक्ष्म पोषक तत्वों के अतिरिक्त पौध हार्मेन-आक्सिन तथा साइटोकाइनिन की मात्रा भी होती है, जो कि पौधो के लिए लाभदायक है।
क्यों बनाएं
- पौधों के सम्पूर्ण विकास में सहायता करता है।
- गौ मूत्र के साथ प्रयोग करने पर कीटनाशक का कार्य करता है।
- इसमें पोषक तत्व घुलनशील अवस्था में उपस्थित होते हैं।
- सूक्ष्म तत्वों की कमी की पूर्ति करता है।
- तरल खाद के रूप में तुरन्त लाभ हेतु खड़ी फसलों पर प्रयोग कर सकते है।
- यह विधि सस्ती एवं जल्दी तैयार होने वाली है।
वर्मीवाश मंे पोषक तत्व
इसमें नाइट्रोजन, फास्फोरस तथा पोटाश के अतिरिक्त हार्मोस(आक्सीन तथा साइटोकाइनीन) की भी मात्रा पायी जाती है, जो पौधों की वृद्धि एवं विकास में सहायक होता है।
बनाने की विधि
- वर्मीवाश की इकाई ड्रम या बाल्टी, नाद या बड़े गमले(लगभग 200 ली0) में आवश्यकतानुसार बनायी जा सकती है। ड्रम में वर्मीवाश बनाने की विधि निम्न् है-
- ड्रम का ऊपरी सतह खुला होना चाहिए। ड्रम के निचले सतह में 1 इंच व्यास का छेद करके एक टोटी लगा देते है।
- ड्रम में सबसे नीचे की सतह पर 25-30 सेमी0 ईंट या पत्थर की गिट्टी बिछा दें।
- गिट्टी के ऊपर 25-30 सेमी मोरंग या बालू बिछा दें।
- मोरंग के ऊपर 30-45 सेमी दोमट मिट्टी की तह बना दें।
- इसमें 50-60 एपिजाइक तथा एनिसिक केंचुए डाल दें।
- मिट्टी के ऊपर 5-7 जगह 7 इंच मोटा गोबर का ढेर रख दें।
- गोबर ढेर के ऊपर 5-10 सेमी मोटा वानस्पतिक पदार्थ (पुआल, भूसा, सूखी पत्त्यिाँ एवं हरा कचरा आदि) की परत बनाये और इसे पानी से गीला कर दें तथा नीचे की टोटी को खुली रखें।
- प्रत्येक सतह बनाने के बाद एक से दो बाल्टी पानी डाले और इस पूरी प्रक्रिया में नल की टोटी खुली रखें।
- 16 से 20 दिन तक शाम को पानी से रोज गीला करते रहेगें। इस प्रक्रिया के समय नल की टोटी खुली रखेगें।
- 16-20 दिन के बाद इकाई में वर्मीवाश बनना शुरू हो जायेगा। अब इस ड्रम के ऊपर एक मिट्टी का घड़ा लटका दें। घड़े के नीचे 6-7 छेद करके उसमें कपड़े की बत्ती डाल दें, जिससे पानी बूँद-बूँद टपकता रहें, और इस प्रक्रिया के बाद नल की टोटी बन्द कर दें।
- 20 दिन बाद शाम को 5 ली0 पानी घड़े में भर दे ंतो प्रत्येक दिन सुबह टोटी से 3-4 ली0 वर्मीवाश प्राप्त हो जायेगा।
- इसे 2 से 2.5 महीने तक प्रयोग करते है, उसके बाद ऊपर की तह(पुआल और गोबर ढेर) कम्पोस्ट खाद के रूप में परिवर्तित हो जाती है, जिसे निकाल लेगें, फिर उसी अनुपात में गोबर ढेर व पुआल डाल कर नई तह बना देगें।
- करीब 8 महीने बाद मिट्टी भी खाद के रूप में बन जाती है। इसके उपरान्त पूरे ड्रम को खाली कर उपरोक्त तरीके से बताये गये विधि से फिर तहवार भरेगें।
प्रयोग विधि
- तरल खाद के रूप में प्रयोग करने के लिए 7 गुना पानी वर्मीवाश में मिलाकर पौधों पर प्रातः या शायं काल छिड़काव करें।
- वर्मीवाश और गौ मूत्र को 10 गुना पानी में मिला कर छिड़काव करने से यह प्रभावकारी कीटनाशक एवं तरल खाद दोनों का कार्य करता है।
किसानों के लिये उपयोगी नाडेप कम्पोस्ट
आज के समय किसान के पास घटते पशुपालन और बढ़ते रसायनिक खादों व दवाओं के प्रयोग से जमींन की रसायनिक व भौतिक दशा खराब होती जा रही है, साथ ही साथ स्वास्थ्य पर भी विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। ऐसी दशा में कम से कम गोबर का उपयोग कर अधिकाधिक मात्रा में खाद बनाने की यह एक सर्वोंत्तम विधि है। इस विधि की खोज महाराष्ट्र राज्य के यवतमाल जिले में रहने वाले गांधीयन कार्यकर्त्ता कृषक श्री नारायण राव पाण्डरी पाण्डेय ने किया, जिन्हें ’ नाडेप काका’’ के नाम से भी जाना जाता है। इसलिए इस विधि से तैयार खाद को नाडेप कम्पोस्ट कहते है।
क्यों बनाये
- एक किलो गोबर से 30-40 किग्रा प्रभावशाली खाद तैयार होती है।
- गोबर की खाद की तुलना में दो गुना अधिक लाभदायक है।
- सरल तथा कम खर्चीली बिधि है।
- तापक्रम अधिक हो जाने के कारण खर पतवारों के बीज नष्ट हो जाते है।
- पोषक तत्वों का प्रतिशत खाद में कार्वनिक पदार्थों द्वारा घटाया या बढ़ाया जा सकता है।
- आवश्यक कार्बनिक पदार्थों का सदुपयोग हों जाता है।
पोषण क्षमता
नत्रजन-0.5 से 1.5 प्रतिशत, फास्फोरस-0.5 से 1.0 प्रतिशत, पोटाश-1.2 से 1.4 प्रतिशत
कैसे बनाये-
आवश्यक सामाग्री
- ईंट, सीमेंट तथा बालू या मिट्टी से बना 12 ग 5 ग 3 फिट आकार का जालीदार ढ़ाचा।
- कचरा (सूखा$ हरा)-1400-1500 किलोग्राम।
- गोबर या गैस स्लरी-90- 100 किलोग्राम।
- बारीक सूखी छनी मिट्टी-1800 किलोग्राम।
- पानी- 1500-2000 लीटर (मौसम के अनुसार)
टैंक बनाने की विधि-
6 इंच गहरी नाली खोदे और 9 इंच मोटी दीवार की सहायता से 12 फीट लम्बा, 5 फीट चौड़ा व 3 फीट गहरा या ऊँचा टैंक बनाये।
प्रत्येक दो रद्दो के बाद तीसरे रद्दे की चुनाई के समय प्रत्येक ईंट के बाद 7 इंच का छेद छोड़ कर चुनाई कर दें।
छेद को इस प्रकार रखें कि पहली लाइन के दो छेदों के मध्य में दूसरी लाइन के छेद तथा दूसरी लाइन के छेदों के मध्य में तीसरी लाइन के छेद सामने आयें।
सबसे ऊपर के रद्दों को सीमेंट की सहायता से जोड़े ताकि ढ़ाचा या टैंक मजबूत बनें।
तैयार टैंक के अन्दर की दीवारों तथा फर्श को गोबर और मिट्टी के मिश्रण से लीप लें।
भली प्रकार सूखे टैंक को कम्पोस्ट बनाने में प्रयोग करते है।
टैंक भरने की विधि
प्रथम भराई
टैंक भरने के पूर्व अन्दर की दीवारों तथा फर्श को पानी एवं गोबर के घोल से गीला करलें, फिर 4-6 इंच डंठल की परत बनायें।
पहली पर्त (वानस्पतिक पदार्थ)
4-6 इंच की ऊँचाई तक सुखा तथा हरा वानस्पतिक पदार्थ (60ः40) भर दें। लगभग 100-120 किग्रा. सामग्री आयेगी। वानस्पतिक पदार्थ के साथ 3-4 प्रतिशत कड़वा नीम या पलाश की हरी पत्ती मिलाना लाभप्रद होगा। इससे दीमक का नियन्त्रण होगा।
दूसरी पर्त (गोबर का घोल)
100-150 लीटर पानी में 4 किलो गोबर घोलकर पहली पर्त पर इस प्रकार छिड़के कि पूरी वानस्पतिक अच्छी तरह भीग जाए। गर्मी के मौसम में पानी का अंश अधिक रखें। यदि गोबर गैस की स्लरी प्रयोग करें तो 10 किलो स्लरी को पानी में घोलें।
तीसरी पर्त (सूखी छनी मिट्टी)
भीगी हुई वानस्पतिक पदार्थ को मिट्टी की 2 इंच 50-60 किग्रा मिट्टी मोटी पर्त से ढंक दें तथा थोडा सा पानी छिडक दें ।
ऊपर बतायी गई विधि के अनुसार लगातार पर्तें बनाकर ढांचे को अपनी ऊँचाई से 1.5 फीट ऊँचाई तक झोपड़ीनुुमा आकार में भरतें जाय,ें साधारणतया 11 से 12 तह में टैंक भर जायेगाा । अब भरें टैंक के ऊपर 2 इंच मोटी मिट्टी और गोबर के मिश्रण के लेप से पर्त बनाकर लीप दें।
द्वितीय भराई
20-25 दिन के बाद खाद सामग्री सिकुड़ कर टैंक के मुँह से 5-6 इंच नीचे बैठ जायेगी । अब पुन: पहली भराई की तरह वानस्पत्कि पदार्थ, गोबर घोल और मिट्टी की सहायता से टैंक को 1‐5 फीट ऊँचा भर दें तथा गोबर व मिट्टी के मिश्रण से लिप कर सील कर दें।
कम्पोस्ट तैयार होने की अवधि तथा मात्रा
प्रथम भराई की तारीख से 90 से 120 दिन बाद कम्पोस्ट बनकर तैयार हो जाती है। इस प्रकार टैंक से एक बार में लगभग 3-3.5 टन (30-35 कुन्तल) कम्पोस्ट तैयार हो जाता है। तैयार खाद भूरे रंग की दुर्गन्ध रहित सोंधी महक युक्त होती है।
खाद प्रयोग करने की मात्रा एवं विधि
3 से 5 टन प्रति एकड़ की दर से खाद को बुआई के 15 दिन पूर्व खेत में फैला दें और जुताई करके मिट्टी में मिला दें।
सवधानियाँ
- पूरे ढ़ाचें को 48 घंटे के अन्दर ही भरकर बन्द कर दें।
- लगातार नमी बनायें रखें तथा जाली की सहायता से आवश्यकतानुसार पानी का छिड़काव करें।
- टैंक को धुप से बचाने के लिए अस्थाई छप्पर या घास-फूस ,द्वारा छाया कर दें।
- एक टैंक में 1000-1200 ईंट लगती है, यदि कुछ टुकड़ों का प्रयाग कर लें, तो लागत कम हो जाती है। अच्छा तो यहि होगा कि पूरा टैंक सीमेंट, बालू, ईंट की सहायता से बनायें। यदि कच्चे गारे का प्रयोग करते हैं तो आखिरी रद्दा सीमेंट से बनायें।
- भराई के समय ध्याान रखें की टैंक में ईटा ,पत्थर, काँच व पालीथीन न जाने पाये।
- टैंक की भराई के समय ऐसी कोई वानस्पतिक पदार्थ(ठोस) न डालें जो सड़ने में दिक्कत हो।
- यदि लागत और कम करनी हो तो बांस व लकड़ी की सहायता से भी टैंक बनाया जा सकता हैं।
कम्पोस्ट की गुणवत्ता बढ़ानें के उपाय
- कम्पोस्ट में कार्बन, नत्रजन का अनुपात सही रखने के लिए सूखा भाग 60 तथा हरा भाग40 के अनुपात में प्रयोग करें।
- दीमक के प्रकोप से बचाने के लिए नीम की पत्तियाँ या पलाश की हरी पत्तियों का टैंक भराई में प्रयोग करें।
- गौमुत्र से भीगा पुआल, फुस, मिट्टी या अन्य खरपतवार का प्रयोग करने से खाद की गुणवत्ता बढ़ जाती है।
- गोबर गैस स्लरी को गोबर के स्थान पर प्रयोग किया जा सकता है।
- टैंक की भराई के समय विभिन्न मिट्टी की परतों के उपर 2.0 किग्रा. जिप्सम, 2.0 किग्रा. राक फास्फेट, 2 किग्रा. सिंगल सुपर फास्फेट, 1.5 किग्रा.यूरिया का मिश्रण बना कर 100-150 ग्राम प्रति परत प्रयोग करने से खाद की पोषक क्षमता में वृद्धि होती है।
- टैंक भरने के 75 से 80 दिन बाद, टैंक की ऊपरी सतह से नीचें की सतह तक बंास या सम्बल की सहायता से जगह- जगह पर छिद्र कर दियें जायें और इन छिद्रों में 500 ग्राम पी.एस.बी.$ 500 ग्राम एजेटोबैक्टर$ 500 ग्राम राइजोबियम आदि को 23.00 ली0 पानी में घोलकर डाल दिया जाये तत्पश्चात इन छिद्रों को बंद कर दिया जाये। इससे कम्पोस्ट की गुणवत्ता भी बढ़ेगी तथा इसके बनने की प्रक्रिया में तीव्रता आयेगी।
आज की मंहगाई के समय में फसलों को पोषण के लिए नत्रजन तत्व की आपूर्ति रासायनिक उर्वरकों से कर पाना छोटे व मध्यम किसानों की खरीद क्षमता के परे है। इसलिए वर्तमान समय में वैकल्पिक स्त्रोतो (जैविक) का उपयोग न केवल आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है बल्कि मृदा की उर्वरा शक्ति को बनाए रखने के लिए भी आवश्यक है। रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग से जल्दी व निश्चित तौर पर कृषि उत्पादन कुछ वर्षो के लिए बढ़ तो सकता है परन्तु इनका लगातार अत्यधिक प्रयोग मृदा उर्वरता व पौधों के स्वास्थ्य के लिए अहितकर है। उत्पादकता बढानें व भूमि उर्वरता बनाए रखने के लिए अब यह नितान्त आवश्यक हो गया है कि जैविक खाद, जीवाणु खाद, हरी खाद, कम्पोस्ट, फसल अवशेषों के समन्वित, संतुलित व समुचित प्रयोग को प्राथमिकता देना होगा एवं उनकी पौध क्रिया व्यवस्था व जैव नियमितता को समझना होगा।
जैव पदार्थ भूमि को न केवल पोषक तत्व प्रदान करते हैं बल्कि भूमि की भौतिक, रासायनिक व जैविक गुणवत्ता और पौध क्रियाओं को समन्वित कर फसलों की उत्पादकता को प्रभावित करतें है। जैव पोषक तत्वों का समुचित प्रबन्धन इस तरह का होना चाहिए जिससे –
- मृदा तत्वों का समुचित उपयोग हो सके।
- जैविक खादों व फसल अवशेषों का पोषक तत्वों के लिए प्रयोग हो सके।
- मृदा परिक्षण की सिफारिशों में फसल चक्र, जैविक और जीवाणु उर्वरकों, सुधारकों और पोषक तत्वों तथा पानी का उचित प्रयोग व प्रबन्ध हो।