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    Home»Health»कोरोनो वायरस महामारी : वैकल्पिक चिकित्सा
    Health

    कोरोनो वायरस महामारी : वैकल्पिक चिकित्सा

    डॉ यूसुफ़ अख़्तर बायोटेक्नोलॉजी विभाग बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर विश्विद्यालयए ;केंद्रीय विश्विद्यालयद्धए लखनऊ
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    ;कोरोनोवायरस महामारी फैलने के बाद से ही वैकल्पिक चिकित्साए जैसेए औषधीय पौधोंए होम्योपैथिकए इत्यादि की ग़लत सूचना और फर्जी उपचारों के दावों की मीडिया और सोशल मीडिया में बाढ़ आ गयी | पूरक और वैकल्पिक चिकित्सा एक आवर्ती विषय है | इसी तरह से ये नीम.हकीम वैद्याचार्य इन संदिग्ध उपचार प्रणालियों से शर्तिया इलाज का दवा करते आएं हैं द्यये सब लंबे समय से ष्प्रतिरक्षा तंत्र को ष्फ़र्ज़ी बूस्टष् कर रहे हैं |
    वास्तव मेंए यह सिरफिरा ख्याल इतना विशिष्ट है कि प्रतिरक्षा प्रणाली को बूस्ट ;मज़बूतद्ध करने का दावा नीम.हकीम वैद्याचार्यों के लिए एक ध्वजवाहक नारे जैसा बन गया हैण् यह लगभग हमेशाए हमारे शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र के बारे में ग़लतफहमी को फैलाते हैंए और इसी लिए वैज्ञानिक साक्ष्यों के प्रकाश में लोगों को पता चलना चाहिए कि प्रतिरक्षा तंत्र क्या है और यह कैसे काम करता हैण् वैज्ञानिक तथ्यों से ये बात साबित हैए कि कई मामलों में तो प्रतिरक्षा तंत्र को बूस्ट करने की ऐसी फ़र्ज़ी कोशिशें उल्टा हानिकारक साबित होती हैंद्यइस विचार के प्रस्तावकए वास्तव में ये कभी नहीं समझाते हैंए कि प्रतिरक्षा तंत्र क्या है | जिसे वे मज़बूत करने का दावा कर रहे हैं और वे ये भी कभी नहीं समझाते हैं किए आखिर प्रतिरक्षा तंत्र को मज़बूत बनाने की आवश्यकता क्यों होगी या वास्तव में उनका फार्मूला कैसे काम करेगा |
    हमारा प्रतिरक्षा तंत्र एक गुलाब के पौधे या अन्य कोई बेल वाली झाड़ी की तरह नहीं है जो बिना सहारे के गुरुत्वाकर्षण के कारण ज़मीन पर गिर जायेगा | यदि आप एक सामान्य स्वस्थ व्यक्ति हैं, जिसका आहार आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करता है , तो आपका प्रतिरक्षा तंत्र अपने कार्यों को अच्छी तरह से करने में सक्षम होगा | इसके अलावा ऐसा कुछ भी नहीं है, जिसे आप इस्तेमाल करें और ये बेहतर काम करने लगे | संक्रामक रोग विशेषज्ञ मार्क क्रिस्लीप ने साइंस.आधारित मेडिसिन ब्लॉग पर लिखा है, ष्प्रतिरक्षा तंत्र एक मांसपेशी नहीं है, एक रॉकेट नहीं है, एक पंप नहीं है, एक गुब्बारा नहीं है, न ही कुछ और जो फुलायाए विस्तारित या अधिक शक्ति के साथ समताप मंडल ;स्ट्रेटोस्फियरद्ध में लॉन्च किया जा सकता हो |

    हम वास्तव में अपनी प्रतिरक्षा तंत्र को कैसे बढ़ा सकते हैं | क्या हैं, इसके वैज्ञानिक तथ्यए जिनका सभी अस्पष्टए निरर्थकएअज्ञानी दावों से कोई लेना देना नहीं है | इसके लिए पहलेए कुछ पृष्ठभूमि जानकारी क्रम में चाहिए जो निम्नलिखित हैं |


    प्रतिरक्षा प्रणाली का बुनियादी ढांचा:
    प्रतिरक्षा प्रणाली आपस में जुड़ी जैविक संरचनाओं और प्रक्रियाओं का एक विस्मयकारी और बेहद जटिल मकड़जाल है | इन सभी को एक साथ समन्वय में काम करना होता है, ये घटक हमें बीमारियों से बचाते हैं, वास्तव में हमारे शरीर में दो तरह की प्रतिरक्षा प्रणालियां काम करती हैं जन्मजात ;इननेटद्ध और अनुकूली ;अडाप्टिवद्धए दोनों को शरीर की अपनी कोशिकाओं और बाहर से आने वाले आक्रमणकारी रोगाणुओं के बीच अंतर करना आता है | इससे परेए निष्क्रिय प्रतिरक्षा भी हैए जो कि अपनी मां के दूध में कोलोस्ट्रम ;प्रथमस्तन्यद्ध द्वारा एक नवजात शिशु को प्रदान की जाती है या एंटीबॉडी.समृद्ध सीरम के इंजेक्शन से भी दी जाती हैए जैसे कोविड.19 की प्लाज़्मा थेरेपीण् निष्क्रिय प्रतिरक्षा उन लोगों के लिए एक वरदान हैए जो स्वयं एंटीबॉडी उत्पादन करने में सक्षम नहीं हैं |
    जन्मजात प्रतिरक्षा प्रणालीरू
    भौतिक बाधाएंरू शारीरिक प्रति रक्षा का पहला स्तर भौतिक बाधाओंए जैसे कि त्वचा द्वारा प्रदान किया जाता हैए कुछ और गैर. रासायनिक बाधाओं द्वारा संवर्धित किया जाता हैण् बलगम श्वसन पथ में रोगाणुओं को फंसाता हैए और पपनियां ;सिलियाद्ध की तरंगें उन्हें दूर फेंक देतीं हैंद्यबाह्य.जीवाणुं खांसी और छींकनेए पसीनेए आंसू और मूत्र के माध्यम से मारे जाते हैंद्यजीवाणुरोधी रसायन त्वचाए लारए आंसूए स्तन के दूध और योनि में पाए जाते हैंद्यपेट में हमारी आंतें गैस्ट्रिक एसिड से रोगाणुओं को मार देतीं हैण् आंतों में पाए जाने वाले लाभकारी जीवाणु रोगजनक प्रजातियों को वहां बसने नहीं देते हैंद्ययहां तक कि वीर्य डिफेंसिंन प्रोटीन और जस्ता ;ज़िंकद्ध धातु की मदद से रोगाणुओं को मार देता हैद्य

    पैटर्न को पहचानने वाली कोशिकायेंरू
    इनमें मैक्रोफेजए डेंड्रिटिक कोशिकाएंए मास्ट कोशिकाएंए हिस्टियोसाइट्सए लैंगरहैंस कोशिकाएं और कुफर कोशिकाएं शामिल हैंद्यइन सब के ऊपरी कवच पर ऐसे रिसेप्टर्स पाए जाते हैं जो उन अणुओं के बीच अंतर कर सकते हैंए जो हमारे शरीर से संबंधित हैं और जो नहीं हैंद्यये रिसेप्टर ही सूजन की प्रक्रिया ;इंफ्लेमेटोरी रिस्पांसद्ध को शुरू करते हैंए जो श्वेत रक्त कोशिकाओं और दूरी फागोसाइट्स कोशिकाओं को संक्रमण के स्थान पर आकर्षित करता हैं फिर ये कोशिकाएं वहां पहुंच कर रोगजनकों को निगलती और नष्ट करती हैंद्यशरीर साइटोकाइन्स नामक प्रोटीन का उत्पादन करता है जो टीएनएफ़;ज्छथ्द्धए एचएमजीबी.1;भ्डळठ1द्धए आईएल.1;प्स्.1द्ध और इंटरफेरॉन के साथ प्रतिरक्षा को उत्प्रेरित करने में मध्यस्थता करतें हैंद्यउत्प्रेणना प्रतिक्रिया को बढ़ाने के लिए पूरक प्रणाली ;कॉम्प्लीमेंट सिस्टमद्ध भी सक्रिय हो जाती हैण् इसमें तीस से अधिक छोटे प्रोटीन और प्रोटीन अंश होते हैं जो एक सुनियोजित बहु.चरण प्रक्रिया में एक साथ काम करते हैंद्यइसी तरह की एक और सुनियोजित बहु.चरण प्रतिक्रिया लेक्टिन मार्ग ;पाथवेद्ध हैण् और फिर कम से कम दस टोल.जैसे रिसेप्टर्स ;टीएलआरद्धए साथ ही इनफ़्लेमोसोम्स और साइटोसोम्स हैंद्यप्राकृतिक किलर ;नेचुरल किलर या एनकेद्ध कोशिकाओं जैसे जन्मजात लिम्फोइड कोशिकायें भी इस तंत्र का हिस्सा हैंद्य
    मैंने पहले ही गिनना छोड़ दियाए और ये अभी केवल जन्मजात प्रतिरक्षा के भाग हैद्य अब हम शर्तिया कह सकते हैं कि प्रतिरक्षा प्रणाली कितनी जटिल हैए और नीम.हकीम वैद्याचार्य द्वारा प्रतिपादित एक साधारण हस्तक्षेप के प्रभावी होने की संभावना क्यों नहीं हैघ् लेकिन रुकिएए हमारे प्रतिरक्षा तंत्र में अभी और भी अस्त्र.शस्त्र हैंद्य
    अनुकूली प्रतिरक्षा तंत्ररू
    जन्मजात प्रणाली मनुष्यों समेत सभी जीवों में मिलती.जुलती पायी जाती हैए लेकिन अनुकूली प्रतिरक्षा तंत्र जैव.विकास के इतिहास में बाद के समय में विकसित हुआ हैए जो शरीर को विशिष्ट रोगाणुओं जिनका वो पहले सामना कर चुके हैंए को याद रखने और प्रतिक्रिया देने में माहिर होता हैण् ये तंत्र केवल कशेरुकी जंतुओं में पाया जाता हैद्य टीकाकरण की सफलता इसी स्मृति पर निर्भर करती हैण् रोगाणुओं पर पाए जाने वाले एंटीजन को एक विशेष प्रकार की श्वेत रक्त कोशिका द्वारा पहचाना जाता है जिसे लिम्फोसाइट्स कहते हैंद्यउनकी ऊपरी सतह पर रिसेप्टर होते हैंए जो एक रोगाणुं के छोटे टुकड़ों ;एंटीजनद्ध से जुड़ जाते हैंए और फिर उन्हें अन्य कोशिकाओं की सतह पर पाए जाने वाले मेजर हिस्टोकोम्पैटिबिलिटी कॉम्प्लेक्स अणुओं से मिलाते हैं जो अंततः शरीर में पाए जाने वाले सभी प्रकार के अणुओं और बाहरी रोगाणुओं पर पाए जाने वाले अणुओं ;एंटीजनद्ध में विभेद करते हैंण्
    लिम्फोसाइट्स को दो प्रकारों में विभाजित किया जाता हैरू बी.कोशिकाएं और टी.कोशिकाएंण् टी.कोशिकाओं को हत्यारी टी. कोशिकाओंए सहायक.टी कोशिकाओं और नियामक टी.कोशिकाओं में विभाजित किया गया हैण् सक्रिय होने पर ये टी.कोशिकाएं ऐसे रसायनों ;साइटोटोक्सिनद्ध का उत्पादन करती हैंए जो शरीर के बाहर से आये रोगाणुओं को मार देते हैंद्यऔर इसके बाद एक और विभिन्न रिसेप्टर्स वाली गामा.डेल्टा टी.कोशिकाएं भी होती हैंद्यबी.कोशिकाएं एंटीजन को प्रस्तुत करती हैंए और एंटीबॉडी का स्राव करती हैंद्यउनकी सक्रियता इस तंत्र में बनने वाले रसायनों की एक श्रृंखला से बढ़ाई और घटाई जा सकती हैण् बी.कोशिकाएं भी कई प्रकार की होती हैंरू प्लास्माबलास्ट्सए प्लाज़्मा कोशिकाएंए मेमोरी बी.कोशिकाएंए लिम्फोप्लाज़मासिसटॉइड.कोशिकाएंए बी.2 कोशिकाएंए बी.1 कोशिकाएं और रेग्युलेटरी बी.कोशिकाएंण्
    एंटीबॉडी प्रोटीन की दो भारी श्रृंखलाओं और दो हल्की श्रृंखलाओं से मिल कर बनी होती हैंए जिसमें एक एंटीजन से टकराने के लिए विशिष्ट भाग होता हैद्य

    एंटीबॉडी के पांच प्रमुख प्रकार हैंरू
    आईजीजी ;प्हळद्धए आईजीए ;प्ह।द्धए आईजीएम ;प्हडद्धए आईजीई ;प्हम्द्ध और आईजीडी ;प्हक्द्धण्
    ज़रूरत पड़ने पर हमारे प्रतिरक्षा तंत्र द्वाराए बहुत कम समय में लाखों एंटीबॉडी अणुओं का उत्पादन किया जा सकता हैण् क्या आप अब तक अभिभूत हो चुके हैंघ् या सटपटा गए हैंघ् जैसा कि आप देख सकते हैंए प्रतिरक्षा प्रणाली पूरी तरह से जटिलता का एक उलझा हुआ मकड़जाल हैद्य
    यहां सिर्फ बहुत प्रमुख घटकों को सूचीबद्ध किया गया हैए जो मिलकर प्रतिरक्षा तंत्र को बनाते हैंए और ऐसे और भी हैं जिनका यहां उल्लेख नहीं किया गया हैय यह सूची संपूर्ण नहीं हैण् कोई अनुसंधान यह दिखा सकता है कि एक हस्तक्षेप इन घटकों में से एक या अधिक की मात्रा में वृद्धि या कमीं कर सकता हैए लेकिन किसी भी शोध ने यह नहीं दिखाया हैए कि इस तरह के अधकचरे फॉर्मूले से युक्त हस्तक्षेपों ;वैकल्पिक चिकित्सीयद्ध के परिणामस्वरूप संक्रमण के कम होने जैसे क्लिनिकल परिणाम हासिल हुए होंण् जब कोई तंत्र इतना जटिल हैए तो उस मकड़जाल में एक एकल धागे का हेरफेर करना कोई समझदारी नहींण् ज़्यादातर ऐसे हस्तक्षेपों का इस अति जटिल तंत्र के समग्र कामकाज पर या तो कोई महत्वपूर्ण प्रभाव नहीं पड़ता या अप्रत्याशित प्रभाव पड़ता है जो फायदे से अधिक नुकसान देता हैद्य
    प्रतिरक्षा तंत्र के विकाररू
    प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया में कमी या अधिकता हो सकती हैण् अमूमन प्रतिरक्षा की कमी गंभीर कुपोषण के कारण होती हैए आनुवंशिक विकार जैसे कि सीवियर कंबाइंड इम्यूनो डेफिशियेंसी ;एससीआईडीद्ध के साथ.साथ एचआईवी ध् एड्स संक्रमणए या इम्यूनोसप्रेसेरिव दवाइयों के इस्तेमाल से भी इसकी कमीं हो सकती है। कुछ लोगों में ज़रुरत से अधिक प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया भी हो सकती हैए जैसे रू
    ● ऑटोइम्यून विकार जो शरीर की स्वयं की कोशिकाओं पर ही हमला करते हैंए जैसे कि गठिया ;रुमेटाइड अर्थराइटिसद्ध और टाइप.1 मधुमेहण्
    ● एलर्जी और अतिसंवेदनशीलता संबंधी विकार ;बहती नाक से लेकर छींकने और बुख़ार आने तक से लेकर संभावित घातक एनाफिलेक्टिक प्रतिक्रियाएं जैसे मधुमक्खीध्बर्रैया के डंक से होने वाली स्थिति तकद्धद्य
    ● सूजन से होने वाले रोग ;इंफ्लामैटोरी बीमारियांद्ध जैसे सीलिएक रोगए सूजन आंत्र रोगए अस्थमाए अंग प्रत्यारोपण अस्वीकृतिए इत्यादिद्य
    ● क्रोनिक संक्रमण और सूजन से संबंधित कैंसरए जैसे हेपेटाइटिस.बी और ह्यूमन पैपिलोमावायरस ;एचपीवीद्ध के संक्रमण से होने वाला सर्वाइकल कैंसरण्
    सूजन ;इंफ्लेमेटरी रिस्पांसद्धरू शरीर के लिए अच्छा और बुरा दोनोंद्य
    जब आप निमोनिया होने पर खांसते हैंए ठंड लग जाने से छींकते हैंए फोड़ा.फुंसी निकलने पर दर्द का अनुभव करते हैंए या शरीर में बुखार का अनुभव करते हैंए तो यह रोगाणुं.सूक्ष्मजीव अकेला ऐसा करने में सक्षम नहीं हैए जो उन लक्षणों का कारण बनता हैय यह आपके शरीर की अपनी प्रतिक्रिया है . उस परजीवी से निपटने के लिए प्रतिरक्षा तंत्र का प्रयासण् हमें शरीर में सूजन वाली प्रतिक्रिया की आवश्यकता हैय यह रोग का उपचार शुरू करता है और बीमारियों और चोटों से हमें उबारता हैण् लेकिन इससे बहुत नुकसान भी होता है। सूजन को होनाए एथेरोस्क्लेरोसिसए रक्त के थक्कों के जमनेए फुफ्फुसीय एम्बोलस ;फेफड़ों की धमनियों का ब्लॉक होनाद्धए दिल के दौरेए स्ट्रोक और अन्य समस्याओं का कारण हैण् जैसा कि मार्क क्रिस्लिप ने लिखाए ष्यदि कुछ केमिकल उत्पाद ;प्रतिरक्षा तंत्र केद्ध आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ा रहे हैंए तो यह वास्तव में आपकी उत्प्रेरक प्रतिक्रिया ;प्रतिरक्षा तंत्र को सक्रिय कर रहें हैंण्ष् और अगर ये आवश्यकता से अधिक बढ़ जाएं तो एक बुरी बात हो सकती हैण् प्रतिरक्षा प्रणाली को ज़रूरत से ज़्यादा उत्प्रेणा देने से मृत्यु तक हो सकती हैद्य
    प्रतिरक्षा तंत्र को ष्बूस्टष् करने वाले नकली और खोखले दावेरू
    इन दावों में से कुछ के प्रस्तावकों का कहना हैए कि उनका अधकचरा ज्ञान वाला फार्मूला प्रतिरक्षा तंत्र को मज़बूत करेगाए लेकिन वो ऐसा कर नहीं पाताण् सिर्फ व्यायामए संतुलित आहार और पर्याप्त नींद जैसी चीजें हैंए जो पूरे शरीर को स्वस्थ रखने के लिए अच्छी सलाह हो सकती हैण् यदि प्रतिरक्षा प्रणाली पहले से ही पर्याप्त रूप से काम कर रही हैए तो वे इसे और बेहतर नहीं बना सकते हैंद्यलगभग सभी वैकल्पिक स्वास्थ्य चिकित्सकों का दावा हैए कि उनके उपचार से प्रतिरक्षा तंत्र में सुधार होगाण् पश्चिमी दुनिया मेंए चीरोप्रैक्टिसर्स ;हड्डी बैठाने वालेद्ध का दावा हैए कि रीढ़ की हड्डी को समायोजित करने का काम करेगाण् एक्यूपंक्चर चिकित्सकों की कल्पना हैए कि वे अस्तित्वहीन एक्यू.पॉइंट्स में सुइयों को घुसा कर इसे पूरा कर सकते हैंए ताकि आपके शरीर में समान रूप से ष्क्यूआईष् ;एक तरह का काल्पनिक आवेशद्ध के प्रवाह को सुचारु किया जा सकेण् होम्योपैथी के पास बहुत कुछ हैरू उनके शीर्ष तीन ष्इम्यूनोथेरेपीष् उपचार एलियम सेपाए जेल्सीमियम और ऑसिलोकोकिनम हैंद्यओस्सिलोकोकिनम तो एक मज़ाक लगता हैण् यदि हम इसके इतिहास में जाएं तो यह एक आदमी का भ्रम था जो कभी अस्तित्व में था ही नहींण् होम्योपैथी के पहले दो सिद्धांतए एक ये कि स्वस्थ आदमी के किसी दवा के खाने पर जिस तरह के लक्षण उत्पन्न होते हैंए यदि किसी बीमरी में वैसे ही लक्षण होंए तो वो दवा उस बीमारी को सही करने में सक्षम होगीण् और दूसरा सिद्धांत कि दवा को जितना ज़्यादा द्रव मिला कर पतला किया जाये उसकी ताकत उतनी ही बढ़ जाएगीए मानो एक चम्मच दवा अगर हिन्द महासागर में मिला दी जाये तो ये बिलकुल संजीवनी बूटी बन जाएगी। ये सब बिल्कुल ही कपोल.कल्पित और अवैज्ञानिक सिद्धांत हैं जिनको कभी भी किसी भी प्रयोग से सिद्ध नहीं किया जा सकाद्य
    डॉ सीड्स कंपनी हल्दी पाउडर को इस दावे के साथ बेच रही हैए कि यह प्रतिरक्षा तंत्र को बढ़ाता हैण् सबूत कहां हैघ् हल्दी के होने वाले लाभ को दशकों पूर्व इसमें मौजूद केमिकलए करक्यूमिन की वजह से बताया गया थाण् लेकिनए हजारों शोध पत्रों और 120 क्लिनिकल परीक्षण के परिणाम उपलब्ध हैंए फिर भी करक्यूमिन का दावा पूरी तरह से सिद्ध होता नहीं दिखताण् रासायनिक सबूतों की एक समीक्षा मेंए वैज्ञानिक लिखते हैं कि करक्यूमिन एक ष्अस्थिरए प्रतिक्रियाशीलए गैर.जैवउपलब्ध यौगिक हैए और इसलिएए ये किसी भी नयी दवा को विकसित करने के लिए एक अत्यधिक अनुचित पदार्थ हैश्द्य
    इसी तरह से योग गुरु बाबा रामदेव की कंपनी पतंजलि आयुर्वेद ने कोविड .19 के लिए कोरोनिल नामक एक आयुर्वेदिक उपचार किट को इलाज के रूप में लॉन्च कियाण् भारतीय मीडिया ने कोरोनोवायरस उपचार में इसे सफलता के रूप में संदर्भित करते हुए ष्किटष् पर शो चलायाण् बाबा रामदेवए ने कहा कि इस किट को ष्क्लिनिकल रूप से नियंत्रित परीक्षण का उपयोग करके विकसित किया गया हैष् और दावा किया कि यह ष्कोविड .19 के लिए 100ः इलाज हैण्ष् ष्कोरोनिलष् संबंधित दस्तावेज़ों और पतंजलि आयुर्वेद द्वारा दी गयी जानकारियों और आंकड़ों के आधार पर जब सेंट जूडस चिल्ड्रन रिसर्च हॉस्पिटलए मेम्फिसए संयुक्त राज्य अमेरिका के रोगाणुं एवं प्रतिरक्षा विशेषज्ञ एवं वैज्ञानिक डॉण् संदीप कुमार धंदा ने इसकी समीक्षा की तो पतंजलि आयुर्वेद के सारे दावे औंधे मुंह गिर गएण् इसके बादए भारत सरकार के आयुष मंत्रालय ने एक बयान जारी किया कि पतंजलि आयुर्वेद को प्रभावकारिता के प्रमाण के अभाव के कारण कोविड .19 के इलाज के रूप में दवा का विज्ञापन नहीं करना चाहिएण् देश की कई अदालतों में पतंजलि आयुर्वेद के खिलाफ भ्रामक प्रचार के लिए मुक़दमे भी दायर हुएण् इसके बाद उन्होंने अपने शर्तिया इलाज के अपने सारे दावे वापिस ले लिए और कोरोनिल किट को प्रतिरक्षा तंत्र को बूस्ट करने वाला बता कर बेचना प्रारम्भ कर दियाए ऊपर की गयी व्याख्या से स्पष्ट है कि ये भी तथ्यात्मक रूप से सही नहीं हैद्य
    हालांकि ऐसा बिलकुल भी नहीं है कि औषधीय पौधों से प्राप्त अर्कों में कोई चिकत्सीय गुण न होते होंए लेकिन वैज्ञानिक तथ्यों केनअनुसार इनका काम करने का तरीका कुछ और हैए जो कि इन नीम.हकीम वैद्याचारों द्वारा किये जाने वाले दावों से बिलकुलनभिन्न हैण् असल में हमारे शरीर की कोशिकाओं में एक साथ हज़ारों की संख्या में नियोजित ढंग से जैव.रासायनिक प्रतिक्रियाएं चलती रहती हैंद्यइन्ही प्रतिक्रियाओ के फलस्वरूप हज़ारों की संख्या में रसायन बनते और टूटते हैंद्यइन्हीं में शरीर में कुछ बुरे रसायन जिन्हे ष्टोक्सिनष् ;विषद्ध कहते हैंए वो भी बनते हैंए ऐसे विष.पदार्थए ख़राब जीवन शैलीए बीमारियांए संक्रमणए अवसाद इत्यादि होने पर शरीर में बहुत अधिक बनने लगते हैंद्यये पदार्थ हमारे शरीर को भयंकर नुक्सान पहुंचाते हैंद्य औषधीय पौधों के अर्कों में बहुत सारे ऐसे पदार्थ पाए जाते हैं जो इन विष.पदार्थोंए ख़ास करके इनके कुछ महत्वपूर्ण प्रकारए जिन्हें हम ऑक्सीडेटिवए नाइट्रोसेटिव और फ्री रेडिकल्स को सोख लेने और शरीर से बाहर निकाल फेंकने की क्षमता रखते हैंद्य अर्कों में मिलने वाले इन पदार्थों में इस क्षमता के कारणों में से एकए उनमें पाए जाने वाली बेंज़ीन.चक्र की बहुतायत हैद्य
    प्रतिरक्षा प्रणाली को ष्बूस्टष् करने वाला वाक्य उन लोगों के लिए अर्थहीन हैए जो वास्तव में प्रतिरक्षा प्रणाली को समझते हैंद्य नीम. हकीम वैद्याचार्यों के लिए तो यह केवल ग्राहकों को धोखा देने में मदद करने के लिए उपयोगी एक जुमला भर हैण् यहां पर नक़्क़ालों से सावधान वाला सिद्धांत लागू होता हैंद्य

    वास्तविक प्रतिरक्षा बूस्टर क्या हो सकता हैरू
    वैज्ञानिक आधार पर सिर्फ एक तरीका हैए जिससे आप वास्तव में अपनी प्रतिरक्षा प्रणाली को कृत्रिम रूप से बढ़ा सकते हैंरू और वो है टीककरणण् ये विशिष्ट रोगों को पहचानने और उनसे लड़ने के लिए आपके प्रतिरक्षा तंत्र को अभ्यास कराते हैंद्य टीके सामान्यीकृत सूजन का कारण नहीं बनते हैंद्यवे अनुकूली प्रतिरक्षा तंत्र के शस्त्रागार को अधिक हथियारों से लैस करते हैंण् यदि आप उस विशिष्ट संक्रामक जीवाणुं ;जिसका टीका लिया थाद्ध से फिर से सामना करते हैंए तो वे बड़ी संख्या में एंटीबॉडी का उत्पादन करने के लिए शरीर को पहले से प्रशिक्षित रखते हैंद्यकई टीके शरीर की प्रतिरक्षा तंत्र को अभिभूत नहीं करते हैंय वे सिर्फ इसका कुशल उपयोग करते हैंद्य
    अंतिम सत्यरू टीकाकरण के अलावा ष्प्रतिरक्षा प्रणाली को बूस्ट करने का कोई अन्य कृत्रिम तरीका नहीं हैंद्य

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